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________________ पश्चिमी भारत की यात्रा अथवा अनुवाद को पढ़कर भी जन-साधारण के लिये सुगम्य नहीं है। इन्हीं टिप्पणियों में मूल लेखक की कुछ ऐसी भ्रान्तियों को भी निराकृत करने का प्रयत्न किया गया है जो या तो उनको स्थानीय सूचकों ने गलत दी हैं या फिर उनके स्वयं के समझने में कोई भ्रम रह गया है। मूल पुस्तक में मूल लेखक द्वारा एवं प्रकाशक द्वारा भी कुछ टिप्पणियाँ दी गई हैं, उनका अनुवाद ब्लेक टाइप में है और अनुवादक की सभी टिप्पणियाँ व्हाइट में हैं। कर्नल जेम्स टॉड के प्रशंसकों और पालोचकों ने उनको सरस इतिहासलेखक, कुशल प्रशासक, स्पष्टवादी, प्रलोभनों से मुक्त और भारतीय-संस्कृति विशेषत: राजपूतों का प्रेमो कहा है। कुछ लोगों ने उनके द्वारा लिखे हुए तथ्यों की प्रामाणिकता को सन्देहास्पद व्यक्त किया है और यह बात किन्हीं अंशों में सही भी है । यह सब कुछ होते हुए भी टॉड ने जहाँ-जहाँ वह रहे, जहाँ-जहाँ घूमे और जहाँ-जहाँ उन्होंने शासन किया, उन स्थानों और वहाँ के निवासियों का गम्भीर अध्ययन किया और उनका वर्णन भी उसी गम्भीरता के साथ किया है। उन्होंने अपने लेखों में इतिहास की मूलभित्ति पर जो भवन खड़े किये हैं वे सुरुचिपूर्ण कला के प्रतीक हैं। उन्होंने इतिहासलेखन की एक ऐसी सरस प्रणाली का सूत्रपात किया जो केवल घटनाओं और तिथिक्रमों का कंकाल मात्र न रह कर पौराणिक उपाख्यानों, सरस लोककथानों, उत्साहवर्धक वीर गाथानों, मनोरंजक प्रवादों और रोमांचकारी लोकगीतों के विशुद्ध रसप्रवाह से सुपुष्ट और प्राणवान है । उनके सभी विश्लेषण सबल मानवीय अनुभूतियों पर आधारित हैं जो अन्य बड़े-बड़े. लेखको में दुर्लभ्य है। जेम्स टॉड का जिस रूप में परिचय दिया जाता है उसके अतिरिक्त वे कविहृदय भी थे। प्राकृतिक-वर्णन में उनके लिखे हुए विवरण बहुत उच्चकोटि के गद्यकाव्य की गणना में पा सकते हैं और जब-जब अपने यात्रा-प्रसंगों में ऐसे सुरम्य स्थल पाये हैं तो उनके कबिहृदय की अनुभूतियाँ अनुप्रवाहित हुए बिना नहीं रह सकीं । अरावली की महिमा का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा है :"यहाँ सभी कुछ महान्, सुन्दर और प्राकृतिक था-मानो प्रकृति ने इसको अपनी प्रिय सन्तान के नित्यविहार के निमित्त ही बनाया हो, जहां दृश्य की . शान्ति एवं अनुरूपता में बाधा डालने वाले मानवीय विकारों के लिए कोई अवसर नहीं था। आकाश निर्मल था, घनी-पत्रावली में से एक दूसरी को प्रत्युतर देतो हुई कोयलों की कूकें सुनाई पड़ रहीं थी, सूर्य का प्रकाश पहुँचते ही बांस की कुंजों में छुपे हुए वन-कुक्कुट प्रातःकालीन बांग देने लगे थे। वृक्षों पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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