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agaran का वेदन
[ ३ कहीं भूलें भी रह गई हैं, तो वे खरी हैं। मैंने लिखा है कि अपनी भाषा में मूल को व्यक्त किया है, परन्तु मेरो अपनी कोई निजी शैली प्रधान भाषा नहीं है । अनुवाद का कार्य बहुत लम्बे समय तक चला है । मैं सामयिक पत्र-पत्रिकादि देखता पढ़ता रहता हूँ । इस बीच में कभी संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का घोष तुमुल हुआ तो कभी सरल हिन्दी का नारा बुलन्द हुआ; ऐसी-ऐसी सूचनाओं का प्रभाव मुझ पर पड़े बिना न रहा । अतः इस पुस्तक में भाषा की प्राद्योपान्त एकरूपता के दर्शन न होना भी स्वाभाविक है। कितने ही शब्द और प्रयोग ऐसे भी प्रा गये हैं जो हमारे प्रान्त में बोले जाते हैं । यह प्रेरणा मुझे मूल लेखक से ही मिली है क्योंकि उन्होंने कहीं-कहीं एतत्प्रान्तीय श्रोर ग्रामीण शब्दों को यथावत् प्रयुक्त किया है । भारतीय स्थानों और व्यक्तियों के नामों की हिज्जे प्राचीन ग्रीक, अरब और पुर्तगाली लोगों के द्वारा उच्चारणभेद से अंग्रेजी तक पहुँचने में कुछ की कुछ बन गई और उनमें से कितनों ही के मूल नामों को तो अब तलाश कर लेना भी बहुत कठिन है। कर्नल टॉड ने यद्यपि इन स्थानों और व्यक्तियों के ठीक-ठीक नामों के संकेत देने का भरसक प्रयत्न किया है फिर भी कुछ उनके अंग्रेजी उच्चारण और कुछ उनके एतद्देशीय संसूचकों की असावधानी के कारण नामों की वर्तनी में संदिग्धता बनी ही रह गई है । इसी प्रकार जिन ग्रीक, अरब, पुर्तगाली, फ्रेंच श्रोर अन्य यूरोपीय स्थानों, लेखकों एवं अन्य व्यक्तियों के नाम इस पुस्तक में आये हैं उनको मैंने अपने उच्चारण के अनुसार नागरी लिपि में लिखा है । संभव है, इन नामों के लिखने में कोई विकृति हुई हो, इसलिये कर्नल टॉड द्वारा प्रयुक्त अंग्रेजी हिज्जे ज्यों की त्यों कोष्ठकों में लिख दी गई है ।
कर्नल टॉड का अध्ययन विस्तृत ज्ञान बहुमुखी और प्रतिभा चतुर्दिक्प्रसारिणी थी । भारतीय इतिहास, यहाँ के निवासियों के रहन-सहन और रीतिरिवाजों तथा यहाँ को पूर्वमध्यकालीन और ब्रिटिश शासन-प्रणाली, आर्थिक, सामाजिक एवं यहाँ तक कि नृवंशशास्त्रीय विषयों का विश्लेषण करते हुये उन्होंने पद-पद पर प्राचीन यात्रियों के विवरणों, अरब, ग्रीक और यूरोपीय लेखकों के उद्धरणों और एतद्देशीय प्राप्त ग्रंथों के सन्दर्भ इस ग्रंथ में दिये हैं । • इन संदर्भों को खोज कर मूल लेख को खोलने के लिए उतने ही अध्ययन, पर्यटन सर्वेक्षण और तत्त्वग्रहण सामर्थ्य की आवश्यकता है । बहुत से ग्रंथों, लेखों श्रोर लेखकों के नाम तो अब प्राप्त भी नहीं हैं; जो प्राप्त हैं उनमें से बहुत से सुलभ नहीं हैं । मैंने यथाशक्ति इस अनुवाद में टिप्पणियाँ देकर उन दुरूह स्थलों को खोलने का प्रयत्न किया है जो प्रायः किसी सुदूर सन्दर्भ से सम्बद्ध हैं और मूल
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