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________________ १४६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा पश्चिमी भारत की राजधानी नहरवाळा की सही स्थिति तो उस समय तक एक अन्वेषण का विषय ही बनी रही जब तक कि १८२२ ई० में मैंने अाधुनिक पट्टण के उपप्रान्त में बलहरा राजाओं के इस ध्वस्त एक्रॉपोलिस' (Acropolis) का ठीक-ठीक पता न लगा लिया, जिसका नाम आधुनिक एवं पूर्ववर्ती सभी भूगोल-शास्त्रियों के लिए एक पहेली बना हुआ था। इस उपनगर का नाम अनुरवाड़ा (Annurwara) अथवा अन्हलवाड़ा है, जो यहाँ के राजवंशों के इतिहास के अनुसार अधिक शुद्ध है; इसी का कुछ बिगड़ा हुआ रूप नेहलवड़े (Nehelvare) या नेहरवळे है अथवा जैसा इदरिसी (Edrisi) में है, नहरौरा (Naharaora) (x) Illustrations of the expeditions of Cyrus and the Retreat of the Ten Thousand. यह पुस्तक अन्य बहुत सी सामग्री के साथ लेखक की मृत्यु के उपरान्त उसकी पुत्री ने १८३१ ६० में प्रकाशित की। (xi) An Investigation of the Currents of the Atlantic Ocean... Indian ocean. Ed. John Purdy (1832) यह पुस्तक भी उसके मरणोपरान्त प्रकाशित हुई थी। मेजर जॉन रेनेल की मृत्यु २६ मार्च, १८३० को हुई थी। वह प्रायः १३ वर्ष तक भारत में रहा । उसके जीवन-काल तक इंगलिस्तान में उससे बड़ा भूगोल-वेत्ता पैदा नहीं हुआ था। E. B., Vol. XX pp. 398-401 'ग्रीक की राजधानी एथेन्स का गढ़। . El Edrisi प्रल इदरसी-का मूल नाम अबू अब्दुल्ला मुहम्मद था। यह शरीफ़-अल इदरिसी-अल-सिकली नाम से भी प्रसिद्ध था। इसका जन्म सियूटा अथवा सिबता (adseptem) में ई० सन् १०६० में हुआ, जो मोरोक्को में है । इसके पूर्वज मलागा नगर पर ६ वीं पोर १० वीं श० में राज्य करते थे। इसी कारण यह अल इदरिसी नाम से प्रसिद्ध हुा । युरोप का भ्रमण करने के उपरान्त वह सिसली के बादशाह रॉजर द्वितीय के दरबार में सम्मानित हुअा, जिसकी इच्छा से इसने अपनी प्रसिद्ध भूगोल की पुस्तक नुजहतुल. मुश्ताक-अफाक-फी-इख्तिराकुल (अर्थात्, उन लोगों की पसन्द, जो दुनिया में फिर कर सब नजारे देखते हैं) की रचना की। इस पुस्तक का पूरा अनुवाद फ्रेंच में १८३६ोर १८४० सन् में एम. जोर्बट ने किया था। मूल का एक संक्षिप्त संस्करण रोम से १५६२ ई० सन् में तथा लैटिन भाषा में पेरिस से १६१९ ई० सन् में प्रकाशित हुमा था। हॉटेमैन ने १७९६ में एक संक्षिप्त संस्करण और निकाला था जिसका शीर्षक 'Edrisii descriptio Africac' रक्खा । स्पेन से सम्बन्धित यात्रा के अंशों का स्पेनिश अनुवाद कोन्डो ने १७९६ ई० सन् में निकाला था। इस पुस्तक की दो हस्तलिखित प्रतियां बोलियन संग्रहालय में तथा एक प्राक्सफोर्ड में विद्यमान हैं। गुजरात के नहरवारा स्थान के सम्बन्ध में इदरिसी का कहना है-'नहरवारा का शासक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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