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पश्चिमी भारत की प्राचीन राजधानी नहरवाळा; लेखक द्वारा उसकी स्थिति को गषणा ; प्राचीन भारत के विषय में ग्रीक भूगोल-शास्त्रियों की अपेक्षा अरब भूगोल- वेत्ताओं की लघुता; नहरवाळा अथवा अणहिलवाड़ा की स्थिति विषयक भूलें; गॉसलिन ( Gasse - lin) को भूल और हॅरॉडोटस की संभावित शुद्धता; भारत के टायर (Tyre ), श्रणहिलवाड़ा का पूर्व इतिहास; बल्हारा पद की उत्पत्ति; सूर्य-पूजा ; बलभी नगर के अवशेष; बलभी से प्रणहिलवाड़ा में राजधानी का परिवर्तन; कुमारपालचरित्र अथवा प्रणहिलवाड़ा का इतिहास; इसके उद्धरण; समकालिक घटनाएं; इस बात के प्रमाण कि भारत में ऐतिहासिक कृतियाँ अज्ञात नहीं थीं; प्रणहिलपुर की स्थापना विषयक अनुश्रुति; भारत की तत्कालीन क्रान्ति; नगर की श्राकस्मिक ऐश्वर्यवृद्धि; राजाओं की सूची; बल्हरा सिक्के; नवीं शताब्दी मुसलमान यात्रियों के सम्बन्ध ।
में
प्रकरण ८
यद्यपि सुप्रसिद्ध द' प्रॉनविले और वैसे ही प्रतिभाशाली मेरे देशवासी रेनेल (Rennell)' के समय से भूगोल शास्त्र में बहुत कुछ प्रगति हो चुकी है परन्तु
" सुप्रसिद्ध भूगोल शास्त्री । १७५६ ई० में १४ वर्ष की अवस्था में नाविक सेवा में भर्ती हुना ! १७६० ई० में भारत प्राया । १७६७ ई० में सर्वेयर - जनरल के पद पर उन्नत्त हुन । ग्यारह वर्ष के बाद १७७८ ई० में वह रायल एशियाटिक सोसाइटी का मेम्बर चुना गया श्रीर १७६१ ई० में ताम्रपदक भी प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त वह 'अफ्रीकन प्रसोसियेशन' और 'रायल ज्योग्राफिकल सोसाइटी' का संस्थापक सदस्य भी था। अपर सोसाइटी ने उसकी मृत्यु के बाद कार्य प्रारम्भ किया था । उसकी मुख्य कृतियां ये हैं-
V
(i) A chart of Banks in South Africa ( 1778 )
(ii) A description of the roads in Bengal and Behar ( 1778 ) (ili) Bengal Atlas ( 1781 )
(iv) An account of the Ganges and Burrampootur Rivers पर शोधपत्र, जो रायल एशियाटिक सोसाइटी में १७८१ ई० में पढ़ा गया । (v) Camel's rate as applied to Geographical purposes (1791 ) रा० ए० सो० में पढ़ा गया शोध-पत्र |
(vi) Marches of the British Army in the Peninsula of India (1792)
(vii) War with France, the only security of Britain (1794) (viil) Geographical System of Herodotus ( 1800 )
उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति । लेखक का यहाँ पर इसी पुस्तक से अभिप्राय है । (ix) A Treatise on the Comparative Geography of Western Asia.
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