SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा एक शिव मन्दिर के अवशेषों के रूप में प्राप्त होते हैं; यह मन्दिर रुद्रमाला अर्थात् 'युद्ध के देवता रुद्र की माला' कहलाता है; परन्तु इसके भग्नावशेष इतने अस्तव्यस्त हो गए हैं कि इसके सम्पूर्ण रूप की कल्पना करना भी कठिन हो गया । ये अवशेष मुख्यतः बरामदों अथवा रविशों के हैं; इनमें से एक के विषय में जनश्रुति है कि वह मण्डप के आगे बने हुए नन्दीगृह अथवा छतरी के अवशेष हैं, जिसमें रुद्र का वाहन नन्दी विराजमान था और निज मन्दिर तो मसजिद में परिवर्तित हो ही चुका है। कहते हैं कि यह इमारत श्रायताकार थी और पाँच खण्ड की थी; यदि अब तक बचे हुए एक भाग से हम अनुमान लगाएं तो यह एक सौ फीट से कम ऊँची न होगी । यह बचा हुआ भाग दो खण्डों का खण्डहर मात्र है जो चार-चार खम्भों पर टिका हुआ है और तीसरे खण्ड के खम्भे बिना छत के अपनी सीध में - अपने ही आधार पर खड़े हैं; छत की पट्टियाँ टूट गई मालूम होती हैं, परन्तु, कितने ही युगों से यह हँसी उडाते रहे हैं सर्दी के तूफानों की और भूचाल के धक्कों की, जिन्होंने इसके आधुनिक पड़ौसी ग्रहमद के नगर [ अहमदाबाद ] की शान को धराशायी कर दिया है ।" मेरे मित्र और सहाध्यायी सम्माननीय लिंकन स्टॅनहोप ( Honorable Lincoln Stanhope ) की लेखनी से मुझे इस [ रुद्रमाला ] के एक मात्र अवशेष का वृत्त ज्ञात हुआ है जिसे मैं जनता के सामने प्रस्तुत करने में समर्थ हुआ । यह खुरदरे बलुआ पत्थर ( Sand-stone ) का बना हुआ है और कहीं-कहीं दानेदार बिल्लौर के टुकड़े भी इसमें लगे हुए हैं; भवन और सामग्री के अनुरूप स्थापत्य भी मोटा और सामान्य ही है । मुझे यहाँ दो प्राजकल प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार बारहवीं शताब्दी में सिद्धराज जयसिंह द्वारा यहां पर रुद्रमहालय (रुद्रमाल) का निर्माण कराने के बाद इस स्थान का नाम सिद्धपुर हुआ । --The Archeological Antiquities of Northern Gujrat - J. Burges, 1903 pp. 58-59. १ यहाँ ( अहमदाबाद ) की सर्वोत्कृष्ट मस्जिद, जिसमें ऐसी मीनारें थीं कि जिन पर चढ़ कर कोई भी व्यक्ति भूल सकता था और जो भूलती हुए मीनारें' कहलाती थीं, तथा अन्य बहुत सी सुन्दर इमारतों को भूचाल ने नष्ट कर दिया था और यदि कॅप्टेन ग्राइण्डले ( Captain Grindlay ) की लेखनी उन्हें अपनी मनोरञ्जक पुस्तक 'The Scenery and costumes of Western India' में सुरक्षित न रखती तो उनका पता भी न चलता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy