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प्रकरण • ७; सियपुर
[ १४१ अपोलोडोटस' (Apollodotus) के बैक्टीरियन तग़ में की एक प्रति (Duplicate) भेंट करके दिया जो मुझे अवन्ती के खण्डहरों में अथवा अजमेर की पवित्र झील पर प्राप्त हुआ था।
सिद्धपुर; जून २०वीं; हमारे भारतवर्ष के भूगोल के बाल्यकाल में प्रतिभाशाली द' पानविले (D' Anville)ने इस नगर के विषय में लिखा है कि "इस नगर का 'शिस्टे' [श्रीस्थल] नाम यहाँ पर तैयार होने वाले रंगीन चित्रों के कारण पड़ा है" परन्तु इसकी व्युत्पत्ति इसके संरक्षक बल्हरा राजा सिद्धराय के नाम से प्रसिद्ध होने के कारण और भी गौरवपूर्ण है। कुछ लोग सिद्धराज को इसका मूल निर्माता मानते हैं परन्तु इस बात के प्रमाण और भी प्रबल मिलते हैं कि उसने इस नगर का केवल कायाकल्प ही कराया था, जिसकी स्थिति अम्बा भवानी के मन्दिर से प्रवाहित होने वाली सरस्वती नदी के किनारे बहुत सोच समझ कर रक्खी गई है। पूर्वकालीन हिन्दू स्थापत्य-कला के बड़े से बड़े नमूने यहाँ पर
' सिकन्दर के बाद उसके राज्य का सीरिया नामक प्रदेश सिल्यूकस के हिस्से में आया। सिल्यूकस के वंशज यूक्रेटाइडेंस (Eukratides) के अधिकार में भी बैक्ट्रिया काबुल की घाटी, गान्धार तथा पश्चिमी पंजाब थे ! उसके वंशज ई०पू० ४८ के लगभग तक इन भागों पर राज्य करते रहे। इनके अतिरिक्त कुछ और भी ग्रीक वंश के लोग छोटे-मोटे भारतीय प्रदेशों पर अधिकार कर बैठे थे जिनका पता अब खुदाई में प्राप्त सिक्कों में मिलता है । इन्हीं सिक्कों में अपोलोडोटस प्रथम व द्वितीय के भी सिक्के मिले हैं जिनकी लिपि खरोष्ठी है, इनमें अपोलोडोटस को "माहारजस अपलदत्तस" लिखा है। पेरीप्लुस (Periplus) के लेखक मे भी अपोलोडोटस और मिनान्डर के सिक्कों का भड़ोंच (Broach) में पाया जाना दर्ज किया है।
- Early History of India ---V. Smith p. 242. * ville qui tire son nom des Shites, ou toiles peintes, que s'y fabriquent. ३ सिद्धपुर सरस्वती के उत्तरी ढालू किनारे पर बसा है । कहते हैं कि मूलराज ने उत्तर
भारत से विद्वान् ब्राह्मणों को यहां लाकर बसाया था। सिद्धपुरुषों का निवासस्थान होने के कारण यह सिद्धपुर कहलाया। इसका प्राचीन नाम श्रीस्थल अथवा श्रीस्थलक था और यह स्थान बहुत पवित्र माना जाता था। जिस प्रकार पितरों का श्राद्ध और तर्पण प्रयाग और गया में किया जाता है, मातृवर्ग के पूर्वजों का श्राद्ध व तर्पण सिद्धपुर में होता है । कहा गया है
"गयाया योजनं स्वर्गः प्रयागाच्चायोजनम् ।
श्रीस्थलाद्धस्तमात्रं स्यात्र प्राची सरस्वती ॥" गया से स्वर्ग एक योजन दूर है, प्रयाग से प्राधा योजन और श्रीस्थल से तो, जहां पूर्व दिशा में सरस्वती बहती है, स्वर्ग केवल हाथ भर दूर रहता है।
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