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प्रकरण - ७; पालनपुर
[ १३६ प्याले और तश्तरी [पत्तल-दोने] बना लेते हैं, अब दिखाई नहीं देते थे और उनके स्थान पर बबूल, सदा हरे रहने वाले पीलू और करील के (मारवी) पेड़ सामने आ रहे थे। कदम-कदम पर बाल बढ़ रही थी । इस यात्रा में जमीन का ढाल स्पष्ट ही आँखों के सामने था और बॅरामीटर उसकी पुष्टि कर रहा था. जो दोपहर में २८०८०' पर था और थर्मामीटर ६६° बतला रहा था। चीरासणी के पास एक टीबड़ी पर से मैंने प्राबू की मोर उ. उ. पू. में अन्तिम बार दृष्टि-निक्षेप किया।
जून १८ वी-पालनपुर, दिशा द. प., दूरी नी मील । यह कस्बा एक छोटे से स्वतन्त्र जिले का थाना है जो कि आजकल बम्बई प्रेसीडेंसी में बृटिश सरकार को संरक्षकता में है। आधे रास्ते पर ही यहां का प्रधान, जो कि दीवान कहलाता है, मेरी अगवानी करने के लिए आया और बड़ी आवभगत के साथ मुझको शहर में ले गया । वहां पर उसने मुझे मेजर माइल्स की सहृदयतापूर्ण संरक्षता में उन्हीं के निवासस्थान पर ठहराया जो उन दिनों वहां के रेजीडेण्ट एजेण्ट (स्थानीय प्रतिनिधि ) थे और उनकी बुद्धिमत्तापूर्ण देख-रेख में वह नगर पूर्ण प्रगति कर रहा था। दीवान मुसलमान है और जालोर व उससे सम्बद्ध भूमि गुजरात के राजाओं द्वारा प्रदत्त जागीर के रूप में कुछ दिनों के लिए उसके पूर्वजों के अधिकार में रहे थे, परन्तु बाद में राठौड़ ने उन्हें वहां से निकाल दिया था। दीवान एक उदीयमान युवक है, उसका व्यवहार भद्रतापूर्ण एवं व्यक्तित्व सन्तोषप्रद और सम्माननीय प्रतीत हुआ। उसके सेवक अधिकतर सिन्धी हैं, जिनको सेवाओं के निमित्त जमीनें मिली हुई हैं। परन्तु, पालनपुर के एक पक्का परकोटा खिंचा हुआ है और इसमें छः हजार घरों की बस्ती बताई जाती है। प्राचीनकाल में यह चन्द्रावती (राज्य) की एक मुख्य जागीर में था और पाल परमार द्वारा, जिसकी मूर्ति यहां पर अब भी वर्तमान है, बसाया जाने के कारण इसका नाम पालनपुर पड़ा' तथा इसी से इसका
' पालनपुर-प्राचीन काल में यह प्रल्हादन पत्तन कहलाता था क्योंकि चन्द्रावती के धारावर्ष परमार के छोटे भाई प्रल्हादन देव ने इसको बसाया था। कहते हैं कि विक्रम संवत् से दो शताब्दी पहले यह नगर ऊजड़ हो गया था। बाद में पालनसी चौहान ने इसको फिर से आबाद किया इसी से इसका नाम पालनपुर पड़ा । कुछ लोगों का कहना है कि जगान (Jagan) के जगदेव परमार के भाई पाल परमार ने इसे बसाया था। ऐसा लगता है कि देवड़ा चौहानों द्वारा प्राबू और चन्द्रावती विजय (१३०३ ई०) के पश्चात् पालनसी ने इसकी पुनः स्थापना की होगी । चौदहवीं शताब्दी के मध्य में चौहानों को दक्षिण की ओर बढ़ते हुए जालोरी मुसलमानों ने अपदस्थ कर दिया, जिनका नेता मलिक यूसुफ
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