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________________ १३८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा इस पक्षी को 'सुक्खी' अथवा 'सुख देने वाली' कहते हैं। इसका भी ऐसा ही अर्थ है, जैसे कमेडी का अर्थ 'कामदेव का पक्षी' होता है। उदयपुर की घाटी और कोटा के पठार पर भी लोगों ने इस पक्षी को ऐसे ही कुछ नाम दे रक्खे हैं जिनका अर्थ यह होता है कि यह 'कामदेव का प्रिय पक्षी' है। जंगलों और पहाड़ों की गुफाओं के निवासी तथा भद्दे-भहे व्यवसाय करने वाले लोगों में ऐसी लाक्षणिक भाषा एवं सांकेतिक अर्थपूर्ण शब्दों का प्रयोग देख कर कोई भी मनोर वैज्ञानिक भाषाशास्त्री चकित हुए बिना न रहेगा। सरोत्रा कोलीवाड़ा में है और एक तालुके अथवा दशमांश का थाना है। यहां पर भाषा एकदम बदल गई है। सिरोही में तो लोग इमारी बात समझ . लेते थे परन्तु यहाँ पर साधारण से साधारण बात समझाना भी बहुत कठिन पड़ता था। ये लोग बनियर के मित्र कोलियों के वंशज हैं जो तब तक वही जिन्दगी बिताते रहेंगे जब तक कि यहाँ का यह पुराना जंगल साफ न हो जायगा। यह जंगल उतना ही पुराना है जितनी कि स्वयं ईशानी देवी हैं। यहाँ से चन्द्रावती पाठ कोस और दांता तेरह कोस गिना जाता है और वसिष्ठ का मन्दिर उ० २५° पू० तथा त्रिकूट वाली पहाड़ी उ० २५° से ३५° पू० पर है। ___जून १७वीं - चित्रासणी - दिशा द०८०प०; दूरी साढ़े ग्यारह मील। यहाँ हमारी आँखों को फिर मैदान के दर्शन हुए। पहले सात मोल तक रास्ता उसी घने जंगल में होकर है । जहाँ यह समाप्त हुआ है वहाँ हाल ही में पालनपुर के शासक ने एक गाँव बसाया है। दो मील आगे चलकर हमको एक और झरना पार करना पड़ा जो बलराम-नाला (Balaram-Nalla) कहलाता है। यह अरावली से निकल कर चार मील नीचे बने हुए बलराम के छोटे-से मन्दिर के पास बनास में मिल जाता है और इसी से इसका यह नाम पड़ा है। यहाँ आकर वह जंगल समाप्त हो जाता है जिसमें होकर हमें प्राबू के किनारे से पचीस मील चलना पड़ा था। पहाड़ की वह त्रुटित श्रेणी, जिसका वर्णन मैं कल के मार्ग-विवरण में कर चुका हूँ, कहीं-कहीं ऊंची चोटी के रूप में अपने उसी क्रम से प्रकट हो जाती थी और हमारे मार्ग से चार पाँच मील की दूरी पर समानान्तर चली आ रही थी। इसी प्रकार दक्षिण-पश्चिम में ईशानी श्रेणी भी दांतीवाड़ा की ओर मुड़ गई थी। अाज के दिन की मंजिल खतम होते-होते मिट्टी में बालू की प्रकृति बढ़ चली थी और तदनुसार वनस्पति में भी बदल दिखाई देने लगा था। धो और रंग-बिरंगा पलास, जिसके पत्तों से घास के तिनकों की सहायता द्वारा लोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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