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पश्चिमी भारत की यात्रा उनके शाही निर्माताओं के अरमानों का अनुमान लगा कर हम, हिन्दुओं के 'जगत नश्वर है, इस सिद्धान्त पर विचार कर सकते हैं। ये सड़कें जो कभी व्यापारिक संघों [कारवानों] और यात्रियों की भीड़ से भरी रहती थीं अथवा रणतुरगों की टापों से गूंजा करती थीं, प्राज सूनी पड़ी हैं और उन पर किसी वनवासी कोली के अतिरिक्त कोई चलने वाला भी नहीं है, जो प्रायः जंगलों और चट्टानों में जाकर शरण लिया करता है। यूरोपीय यात्रियों के प्रारम्भिक काल में यह रास्ता राजपूतों (Razbouts) भोर कोलियों की आवारा और घुमन्तू जातियों की हरकतों के लिए प्रसिद्ध था जिनके रहन-सहन के बारे में थीवनॉट (Thevenot) और ओलीरिअस । (Olearius) ने जो कुछ विवरण दिया है उससे सिद्ध होता है कि मेरे देवड़ा मित्रों की नैतिकता में शाहजहां के जमाने से अब तक कोई अन्तर नहीं पड़ा है।'
गिरवर से चार मील दूर हमने एक झरना पार किया जो कालेड़ी (Kalaire) कहलाता है और जो पूर्ववर्मित (गिरवर) ग्राम से चार मील पश्चिम में मूंगथाल या मूंगथल नामक छोटी सी झील से निकलता है । हमारे दाहिनी ओर ठीक पश्चिम में चार मील पर एक तीन शिखरों वाला ऊँचा डूंगर खड़ा है जिस पर कोलियों की कुल-देवी प्राया-माता (Aya-Mata) अथवा ईशानी का मन्दिर है । यह माता और घोड़े की मूर्ति-बस, यही दोनों इस आदिम जाति में पूजनीय माने जाते हैं । इस त्रिकूट से एक पहाड़ी श्रेणो पश्चिम में हीसा (Deesa) और दांतीवाड़ा की ओर प्रारम्भ होती है; यद्यपि ऊपर से देखने में यह इससे असम्बद्ध दिखाई पड़ती है परन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि
१ हमें एक बनजारे व्यापारियों का काफिला' या कारवां मिला जिन्होंने कहा कि उन पर
दो सौ लुटेरे राजपूतों ने हमला किया और बचाव के लिए सौ रुपये देने को बाध्य किया। इससे हमें अपनी रक्षा के लिए चौकस होना पड़ा क्योंकि पहले दिन ही उन्होंने दूसरे सौ आदमियों को देखा था, जिन्होंने जो कुछ उनके साथियों को मिला था उसीसे सब कुछ समझ लिया और कुछ नहीं कहा; केवल उनका एक बैल ले जा कर सन्तुष्ट हो गए। परन्तु वे पहले वाले एक सौ से जा मिले और हम पर हमला करने से न चूके।
-Olearius, Vol. I, Liv. I, II 3. १ यहीं पर सबसे पहले मैंने पृथ्वी माता का मूर्तीकरण (personification) देखा है। ईशानी
ईशा-देवी, अवनी-पृथ्वी; सर्वधात्री (माया माता) । मुझे यह मालूम नहीं कि सष्टि में सबसे अधिक वेगवान होने के कारण ही सबसे प्रषिक तेजोमय प्रसृष्ट के प्रतीक के रूप में घोड़े की पूजा हो सूर्य की पूजा है अथवा क्या ? परन्तु, यह अवश्य है कि इस बात में थे (कोली) लोग दूसरी जंगली भील और सेरिया जातियों के समान हैं।
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