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________________ प्रकरण - ७, चन्द्रावती [१३१ यात के प्रमुख मार्ग से कुछ हटती हुई होने पर भी कतिपय अन्य मार्गों के मध्य में स्थित होने के कारण इस नगरी के अभ्युत्थान के साधन यथावत् बने रहे होंगे। यदि प्रमाण की आवश्यकता हो तो आबू पर निर्मित वैश्य-बन्धुओं के मन्दिर को देख लीजिए। इस मन्दिर का निर्माण-काल विक्रम संवत् १२८७ (१२३१ ई०), जो उत्तरी भारत पर इस्लामी आधिपत्य के चालीस वर्ष बाद का है, यहाँ के वैभव की विशालता, शासकों की प्रबल शक्ति, और कलाओं की उस अवस्था को स्पष्टतया व्यक्त करता है जो उस समय तक अक्षुण्ण बनी हुई थी। यद्यपि शिलालेख में लिखा है कि 'चन्द्रावती पर देवतुल्य धारावर्ष का एकछत्र राज्य था' परन्तु, यह स्पष्ट है कि उसने अणहिलवाड़ा की सार्वभौम सत्ता को स्वीकार कर लिया था, जिसकी प्राधीनता से मुक्त होकर उसके पूर्वज जैत ने अपनी राजभक्ति अपनी पुत्री 'बुद्धिमती ऐच्छिनी' सहित दिल्ली के अन्तिम राजपूत सम्राट पृथ्वीराज को समर्पित कर दी थी।' धारावर्ष के बाद परमार अधिक समय तक स्वतन्त्रता की रक्षा न कर सके, इसका प्रमाण वसिष्ठ-मन्दिर के एक शिलालेख से प्राप्त होता है, जिसमें आबू पर जालोर के राजा कान्हड़देव चौहान की विजय का उल्लेख है; इसी लेख में एक शपथ भी उल्लिखित है कि यदि परमार अपना स्वत्त्व पुनः प्राप्त कर ले तो वह इस मन्दिर की धार्मिक जागीर को चालू रखे अन्यथा उसे साठ हजार वर्षों तक नरक में वास करना होगा। इस लेख में कोई तिथि तो नहीं दी हुई है परन्तु क्योंकि उसके पुत्र वीरमदेव को अलाउद्दीन ने संवत् १३४७ अथवा १२६१ ई० में जालोर से निकाला था इसलिए यही सम्भव है कि धारावर्ष के पुत्र प्रेलदम (Preladum) प्रिल्हादन] से ही कान्हड़देव ने पाबू का अधिकार छीना था। कुछ भी हो, यह एक अस्थायी विजय थी क्योंकि देवड़ों के इतिहास में लिखा है कि राव लुम्बा ने ही प्राबू पर सं० १३५२ अथवा १२६६ ई० में और चन्द्रावती पर सं० १३५६ अथवा १३०३ ई० में स्थायी रूप से विजय प्राप्त की थी। जिन युद्ध में देवड़ों ने परमारों से सत्ता हस्तगत की थी वह बाड़ेली नामक गांव में १ अन्तिम भाट कवि चन्द को ३६ पुस्तकों में से एक में उस युद्ध का वर्णन है जिसमें प्रण:हिलपुर के राजा भीमदेव द्वारा धष्ट पाबू को मुक्ति के लिए प्रयत्न किया गया था और जिसका अन्त भीम की पराजय एवं मृत्यु के साथ हुआ था। जैत्र, जिसने अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लिया था, एक सौ आठ सामन्तों में परम प्रसिद्ध हुमा, और उसका पुत्र लक्षण (लक्षमण) चौहान का महामात्य बना। • स्व० गो० ही० प्रोभा ने यह घटना वि० सं० १३६८ (ई. स. १३११) में होना लिखा है।-सिरोही राज्य का इतिहास पृ० १८७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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