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________________ १३२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा हुआ था जहाँ अगनसेन का पुत्र मेरुतुग अपने सात सो सम्बन्धियों के साथ काम आया था। इन समयों के बीच-बीच में परमारों के छोटे-छोटे मातहत सामन्तों की संख्या को चौहान कम करते रहे ; प्रत्येक विजय के अवसर पर एक नई शाखा उत्पन्न होती रही और इनमें से बहुत सी शाखाओं के बनने में तो उनके प्रमुख की सहायता भी आवश्यक न हुई; उनके वंशजों को प्रमुख को साधारण सी आज्ञा का पालन मात्र करना पड़ता था; मदार और गिरवर आदि के ऐसे ही सरदार हैं । हिन्दू पुरातत्त्वान्वेषक के लिए ये विवरण कितने ही मनोरंजक क्यों न हों साधारण पाठक को इन भावनाओं में कोई रस नहीं प्रावेगा इसलिए मैं अब चन्द्रावती से विदा लेता है-उसी चन्द्रावती से जो संवत् १४६१ अथवा १४०५ ई० में राव सुब्बू' द्वारा सिरोही को स्थापना होने पर तथा साथ ही अहमदाबाद बसाए जाने पर पूर्णतः नष्ट हो गई थी। मैंने अपने साथियों की एक टुकड़ी खण्डहरों को देखने के लिए भेज दी थी क्योंकि इन अवशेषों में किसी प्रकार की रूचि न रखने वाले मेरे देवड़ा मित्रों की गपशप की अपेक्षा मैं उन लोगों के विवरण से अधिक ठीक निर्णय पर पहुँच सकता था। उन लोगों द्वारा प्रस्तुत विवरण ने अपनी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण खोज को देखने के लिए मेरी इच्छा को जागत कर दिया-जिस खोज को मैं सिन्धु पर आरोर, जमना [यमुना पर सूरपुर', चम्बल पर बरौली, हाडौती में चन्द्रभागा और ऐसे ही बहुत से विस्मृत नामों से कम महत्त्वपूर्ण नहीं समझता। उन्होंने मुझे प्रानन्दपूर्वक उन बचे-खुचे मन्दिरों और बावड़ियों का विवरण सुनाया जिनके खम्भे मिट्टी में लिपटे पड़े थे, मूर्तियां भग्न हुई पड़ी थीं, ये सब ढेरों में इस प्रकार पड़ी थी मानों युद्ध में फेंकी गई हों, ये सब किसी भावी यात्री की लेखनी को अमर बनाने के लिए रही जा रही है। यह एक विचित्र तथ्य है कि भारत में केवल धार्मिक स्थापत्य ही इस कला की प्राचीन अवस्था का सूचन करने के लिए बचा रह गया है। चित्तौड़ के अति ' राव शिवभारण या शोभा ने वि० सं० १४६२ (ई० स० १४०५) में सिरणवा नामक पहाड़ी के नीचे एक शहर बसाया था और पहाड़ी के ऊपर किला बनवाया था जो वर्तमाद गिरोही से प्रायः दो मील की दूरी पर अब भी खण्डहर के रूप में मौजूद है। वह नगर अपने संस्थापक के नाम पर शिवपुरी या पुरानी सिरोही कहलाता है । वर्तमान सिरोही नगर राव शोभा के पुत्र सहस्रमल्ल या सँसमल ने वैशाख सुद २ संवत् १४८२ (१४२५ ई०) के दिन बसाया था।-सिरोही राज्य का इतिहास, पृ. १९३-१६४ सूरपुर मथुरा का नाम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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