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प्रकरण ७
गिरवर; चन्द्रावती; स्मारकों की दुर्दशा; लेखक द्वारा खोज; शिलालेख, चन्द्रावती को युगध्वस्त नगरी का वर्णन; वापिकाएं; सिक्के; श्रीमती ब्लेयर का जर्नल [रोजनामचा); यात्रा फिर चालू; पुरानी सड़कों का त्याग; पूर्व यूरोपीय यात्रियों के समय में घुमन्तू जातियों के चरित्र; पर्वतश्रेणी; सरोतरा; मैदान में पुनरागमन; चीरासनी [चित्रासणी]; पाल्हनपुर जिले का दीवान; पाल्हनपुर की पुरातन वस्तुएं; मेजर माइल्स; सिद्धपुर-शिवमन्दिर; रुद्रमाला के ध्वंसावशेष; शिलालेख ।
गिरवर-जून १६वीं-बरसाती क्षेत्रों से भारी बादल उमड़े चले पा रहे हैं और यह सूचित कर रहे हैं कि मानसून आने ही वाला है इसलिए मुझे जल्दी ही आगे बढ़ना चाहिए अन्यथा झरनों में बाढ़ आ जायगी और मेरा बड़ौदा पहुँचने का मार्ग रुक जायगा । चन्द्रावती रही जा रही है, इसका मुझे दुःख है । पाठकों को एतद्-विषयक थोड़े से साधारण विवरण से ही सन्तोष कर लेना पड़ेगा।
चन्द्रावती अथवा, जैसा कि इसको बोलते हैं, चन्द्रौतो परकोटे से घिरी होने के कारण नगरी कहलाती है। यह दक्षिण-पूर्व में गिरवर से १० मील के अन्तर पर इसी नाम की जागीर में सिरोही राज्य के अन्तर्गत है। यद्यपि गिरवर के सरदार के सौजन्य और ज्ञापकता के लिए मैं उसका आभार मानता हूँ परन्तु एक पुरातत्त्वान्वेषक के नाते समय और बर्बर तुर्क द्वारा विध्वस्त स्मारकों के विक्रेता एवं नाश करने वाले को मैं क्षमा नहीं कर सकता। यह भावना कदापि सही नहीं है, क्योंकि यह स्थान पहले ही मनुष्य को पहुँच के बाहर है और फिर यहाँ के स्वामी के महान् लोभ के कारण, जिसे प्रतिवर्ष यहाँ की टूट-फूट को बिचौती से अच्छी आमदनी हो जाती है, वे सभी शृङ्खलाएं नष्ट हो जायेंगी जो इसे अतीत से सम्बद्ध किए हुए हैं। प्रकृति की उदारता भी परमारों के गौरव को द्रुतगति से दुर्भेद्य आवरण द्वारा ढंके जा रही है । इन विशाल मन्दिरों में नीरवता का साम्राज्य छाया हुआ है । किसी समय जिन सड़कों पर धर्म और व्यापार से प्रेरित धनाढ्य श्रद्धालुओं की भीड़-भाड़ लगी रहती थी वहां आज शेरों और रीछों ने अधिकार कर लिया है अथवा कभी-कभी इनसे कुछ ही. अधिक सभ्य कोई भील भी आ निकलता है । चन्द्रावती के विध्वंस के साथसाथ व्यापार का मार्ग भी बदल गया और यदि उन घुमावदार रास्तों का प्राचीन ग्रन्थों एवं शिलालेखों में वर्णन न मिलता होता तो उनके बारे में कुछ भी
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