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________________ १२८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा पता न चलता । मुझे सबसे पहले इसका हाल "भोज-चरित्र" से ज्ञात हा जिसमें लिखा है कि जब किसी उत्तर-देशीय आक्रमणकारी ने राजा भोज को धार की गद्दी से उतार दिया तो वह भाग कर चन्द्रावती आ गया था। इससे पता चलता है कि यह नगरी उस समय धार के राज्य में थी। फिर भी, इसकी स्थिति का ठीक-ठीक पता लगाने के लिए मेरा प्रयत्न बहुत दिनों तक असफल रहा, विशेषत: जब मुझे मालूम हुआ कि इसका नाम बिगड़ कर चन्दौती हो गया है। अन्त में, मेरे दल के एक सदस्य को, जो शिलालेखों को देखने के लिए घुमता था, इसका पता चांपी नामक ग्राम के एक तालाब पर लगा जो अरावली के दक्षिण की ओर कोरावर की जागीर में है। इस शिलालेख में चित्तौड़ के गहलोत राजाओं के और अणहिलवाड़ा के सोलंकियों, चन्द्रावती के परमारों तथा नांदोल के चौहानों के अन्तर्जातीय युद्धों का वर्णन है जिसमें अपर जाति की वंश-परम्परा पर प्रकाश डालते हुए लिखा है-"अरिसिंह के दो पुत्र कन्हैया और बीत्थुक (Beethuc) बड़े योद्धा थे, जो दोनों ही चन्द्रावती की लड़ाई में श्री भवान गुप्त के साथ युद्ध करते हुए मारे गए। श्री भवान गुप्त के दो पुत्र थे, भीमसिंह और लोकसिंह । वीसलदेव, हाराद्रि कर्ण और मूलराज के आनन्दमय हृदय में निवास करने वाले बली योद्धाओं को घायल करता हुआ भोमसिंह मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसका भाई श्री लोकसिंह सहस्रार्जुन (आधुनिक चूलि माहेश्वर (Chooli Maheshwar) जो नर्मदा पर है) के नगर को विजय करने के प्रयत्न में अपने शत्रु मालवराज सोमवर्मा के द्वारा वामनस्थली के युद्ध में मारा गया।" बाँध के निर्माता तक पहुँचने से पहले कितनी ही और बातों का उल्लेख भी शिलालेख में है जिसके अन्त में तिथि १३२ दी हुई है जिसका अन्तिम अंक मिट गया है । इस तरह इसे संवत् १३२५ वि० अथवा १२६६ ई० समझना चाहिए । चन्द्रावती के युद्ध का संकेत इससे कोई एक शताब्दी पूर्व का है, जैसा कि इस युद्ध के नायकों के शिलालेखों से ध्वनित हुआ है अर्थात् अरिसिंह चौहान और सोमेश्वर परमार के लेखों से; इनमें से पहला मुझे नांदोल में और दूसरा हारावती में प्राप्त हुआ था। इस प्रकार राजा भोज के इतिहास से हमें चन्द्रावती के दो युगों का पता चलता है ; पहला, सातवीं शताब्दो में और दूसरा बारहवीं में। प्रथम युग से भी कितने समय पूर्व से इसकी स्थिति है, इसका निर्णय तो हम अनुश्रुतियों और लोक-गाथाओं के ही आधार पर कर सकते ' इसका उल्लेख मैंने भोजराज का काल-निर्णय करने के सम्बन्ध में Transactions of the Royal Asiatic Society, Vol. I, p. 223 में किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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