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________________ प्रकरण - ५; श्राबू की परिधि [ १२३ करके सवार मुझको भी छोड़ कर वे लोग भाग गए और यदि एक नौकर दया मेरे ऊपर अपनी चट्टर न डाल देता तो में तो दोनों तरफ से मारा जाता- एक तो इतना बीमार था कि भाग कर बच नहीं सकता था, फिर ऊपर से बरें खा जातीं । कुछ तो इस चद्दर के कवच के कारण और कुछ, जैसा कि राहतियों ने कहा, अचलेश्वर के भेंट चढ़ाने के कारण मेरे एक भी डंक नहीं लगा । जिधर से हमला हुआ था उधर से शत्रुओं की भिनभिनाहट कम होने तक प्रतीक्षा करके वह लंगड़ा नौकर ठाकुर की घोड़ी पर यद्यपि वह पेट में बच्चे के कारण मोटी हो रही थी, पूरी तेजी के साथ 'अली मदद, अली मदद' चिल्लाता हुआ भागा। वह भटियारा बिना पगड़ी या साफे के ही भागता चला गया और बाद में मुझे एक सिपाही को डोली लिवा लाने के लिए भेजना पड़ा क्योंकि बर्रों ने उसे इस बुरी तरह काट लिया था कि वह हिल-डुल भी नहीं सकता था । ० दोपहर में हम गिरवर पहुँचे जहाँ मुझे मालूम हुआ कि मेरा लश्कर पालड़ी से उसी समय वहाँ पहुँचा था । यहाँ बॅरामीटर २८ ६०' पर था जब कि पालड़ी में (जहाँ से चढ़ाई प्रारम्भ होती है) यही यन्त्र २८०४० बतला रहा था; इन परिणामों से इसका मूल्य तुरन्त आँका जा सकता था । मैं अन्यत्र बता चुका हूँ कि यहाँ के लोग आबू की बाहरी परिधि का अनुमान बीस से पचीस कोस अर्थात् चालीस से पचास मील का लगाते हैं । इस अनुमान की सचाई का पता लगाने के लिए मैंने एक मोटा सा खाका नीचे दिया है जो गुरुशिखर से वसिष्ठ के मन्दिर अथवा उतार की तलहटी में तालाब तक पहुँचने के मार्ग के आधार पर बनाया गया है; यह बिलकुल सही है, यह तो नहीं कहा जा सकता, परन्तु इससे एक ख़्याल बनाया जा सकता हैं । इस रेखा की सामान्य दिशा दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम है और इसके सभी मोड़, उतार-चढ़ाव व ऊँचाई को ध्यान में रखते हुए ग्यारह कोस अथवा बाईस मील का अनुमान बैठता है; परन्तु हम गुरु-शिखर से मैदान तक के सीधे उतार के लिए, यदि यह संभव हो, दो कोस और जोड़ देते हैं, इस तरह इस पर्वत का विस्तार तेरह कोस या छब्बीस मील आता है। अब, यदि इसमें से एक तिहाई भाग कम कर दें तो तलहटो पर का सीधा विस्तार ज्ञात हो जायगा जो इसकी अनुमानित बड़ी से बड़ी परिधि हो सकता है, परन्तु मेरी समझ से यह बहुत ज्यादा है । सम्भवतः यदि हम उत्तर में गुरु शिखर से दक्षिण में वसिष्ठ के मन्दिर तक की सीधी रेखा को आबू का सीधा समतल भाग मान कर अनुमान लगाएं तो अधिक सही परिणाम निकल सकेगा । यह रेखा श्राठ कोस या सोलह मील की है - उतार-चढ़ाव व ऊबड़-खाबड़ भूमि का सीधा फासला और जोड़ें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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