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पश्चिमी भारत की यात्रा
अंश बताए थे। बहुत सी कुब्बेदार जड़ें बाहर निकल आई थीं और मुझे लोगों ने बताया कि एक पखवाड़े में अच्छी तरह वर्षा हो जाने पर तो भूमि फूलों से सजड़ हो जावेगी ।
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ग्यारह बजे ( दिन); हम लोग पर्वत की तलहटी में तालाब पर जा पहुँचे जहाँ मिलने के लिए मैंने अपने आदमियों को प्राज्ञा दी थी; परन्तु वहां न आदमी दिखाई दिए न घोड़े और मुझे गिरवर के सरदार का आभार उठाना पड़ा जिसने सौजन्यवश अपने दो घोड़े मेरे साथ कर दिए थे । एक पर मैंने अपने वृद्ध गुरु को चढ़ा दिया और दूसरे पर एक लंगड़े नौकर को बैठा दिया । मैं गिरवर के जंगल को छान कर चार मील दूर हमारे पड़ाव के स्थान को ढूंढने के लिए अपनी 'स्वर्गीय गाड़ी' पर बना रहा। मैं पहले वर्णन कर चुका हूँ कि यह घना जंगल आबू की तलहटी के किनारे-किनारे चला गया है; इसको पार करते समय मेरे साथियों की इस छोटी सी टुकड़ी को उसी दुर्भाग्य का सामना करना पड़ा जिसका शिकार गुजरात का बर्बर सुलतान' हो चुका था । एक ऊंचे पेड़ से, जो अपनी कोढिया छाल के कारण 'कोढ' कहलाता है, तीव्र क्रोध में भरा हुआ बर्रों का दल निकला और प्रत्येक व्यक्ति पर टूट पड़ा। सबको अपने-अपने प्राणों की पड़ी थी । वृद्ध गुरु ने जॉन गिल्पिन ( John Gilpin) की तरह हिम्मत करके अपने घोड़े के एड़ लगाई और हवा में उड़ते हुए उनके सफेद वस्त्रों में वे टूटे तारे के समान दिखाई दिए; सिपाही ने अपनी बन्दूक भी फेंक दी कि उसे दौड़ निकलने में सुभीता मिले; 'स्वर्गीय गाड़ी' और उस पर
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महमूद बेगड़ा ।
विलियम कूपर (William Cowper) की प्रसिद्ध व्यंग्य - हास्य- प्रधान कविता का पात्र । गिल्पिन लन्दन का रहने वाला था और श्रोलनी (Olney) के निकट उसकी जायदाद थी जहाँ विलियम कूपर १७८५ ई० में निवास करता था । कवि ने वर्णन किया है कि अपने विवाह की २० वीं वर्षगांठ मनाने के लिए जॉन गिल्पिन और उसकी पत्नी ने एडमन्टन नामक स्थान पर जाने का विचार किया । मार्ग में गिल्पिन का घोड़ा बिगड़ गया और एडमन्टन से भी आगे दस मील तक दौड़ता चला गया जहाँ से उसे वापस लौटना पड़ा । रास्ते में गिल्पिन की दशा बड़ी विचित्र हो गई थी जिसका वर्णन परम हास्यप्रद है । कूपर को गिल्पिन की कहानी लेडी ऑस्टिन (Lady Austen ) ने सुनाई थी जब वह परम उदास था। इस कहानी को सुन कर वह रात भर हँसता रहा और प्रातः उसने इसको कविताबद्ध कर दिया।
The Oxford Companion to English Literature, Paul Harvey, P. 41IS.
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