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________________ प्रकरण -६; उतराई [ १२१ जिससे सदैव हरियाली से ढंका रहने वाला वह मठ भी सूखा और ऊजड़-सा दिखाई देने लगा। मैं पहाड़ के किनारे-किनारे मोड़ खाते हुए बाग में टहलने लगा जिसमें केवल कुछ साधारण से कन्द और शाक ही लगे हुए थे। मेरा विश्वास था कि सूर्य देवता के उदित होते ही धुन्ध तिरोहित हो जायगी और मुझे कुछ और और दृश्य देखने को मिलेंगे, परन्तु मेरी यह आशा व्यर्थ गई। ___यह मन्दिर सुसम्पन्न है और यात्रियों के उत्साह से यहां के निवासियों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती है। अभी हाल ही में सिरोही के राव श्योसिंह ने इसके जीर्णोद्धार में दस हजार रुपये खर्च किए हैं और आबू की (Cybele) अधिष्ठात्री दुर्गादेवी के एक स्वर्णच्छत्र चढ़ाया है; परन्तु, बेरूर (Berrur) के राणा ने देवी के सम्पूर्ण चढ़ावे में से बंटवारे का बहाना करके देवड़ा राजा की भेंट को वहां से हटा दिया और. प्रत्यक्ष में, देवता के माल को चोरी होने से बचाने की युक्ति अपने लाभ के पक्ष में प्रस्तुत की। जून १५वीं; जिस बॅरॉमीटर पर मुझे पूरा भरोसा था वह अचलेश्वर से चलते ही टूट गया। वहां इसमें और बचे हुए बॅरॉमीटर में १°४०' से कम का अन्तर नहीं था क्योंकि टूटने वाले में २६.६५' और दूसरे में २५०५५' के अंक थे । वसिष्ठ के मन्दिर पर इसमें २६°२०' तथा थर्मामीटर में ७२. पढ़े गए थे अतः आबू की ठीक-ठीक ऊंचाई ज्ञात करना अभी बाकी ही रह गया था; इसका शोधन या तो समुद्र के तट पर पहुँचने पर हो सकता था अथवा इसकी सचाई जाँचने के लिए और कोई दूसरा उपाय करने पर । अस्तु, इसके द्वारा व्यक्त की गई ऊंचाई का मेल मेरे उस मोटे अनुमान से बैठ जाता है जो मैंने समय-समय पर चढाई करते समय, दृष्टि के अनुमान से अथवा आसपास की भूमि पर दृग्विस्तार करके लगाया था । सुबह आठ बजे हल्के-हल्के बादलों में हमारी उतराई शुरू हुई। हमारा रास्ता क्रमशः ढालू था जिसमें कई सौ गजों तक राहतियों द्वारा खेती के लिए जमीन निकालने को काट-काट कर गिराये हुए पेड़ों के कारण जगह-जगह रुकावट पाती रही। लोहे का खुरपा, जिससे जमीन में बीज (विशेषतः मक्का) के लिए गड्ढा करते हैं, यहां पर हल का स्थान लिए हुए है। उतराई के लगभग एक तिहाई रास्ते तक उन फलों को बहुतायत रही जिनको हिन्दुस्तान में फालसा ओर करौंदा कहते हैं । आगे चलकर सहसा इनके दर्शन दुर्लभ हो गए। अतः इस स्थान को उसी धरातल पर समझना चाहिए जहां पहले मैंने इन (फलों) को चढ़ाई में देखा था और जहां पर रोगी बॅरॉमीटर ने २७°३५' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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