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________________ १२० ] पश्चिमी भारत की यात्रा स्वर भी सर्वोपरि (Super-added) योग दे रहा था। परन्तु, अावाज के इस झमेले में भी परमपिता की स्तुति करते हुए साधु-बन्धुओं का समवेत स्वर सुनाई दे रहा था जो इस दृश्य में (Inharnionious) बेमेल प्रतीत नहीं होता था। पर्वतीय एकान्त में इस साधना के वातावरण से शान्त-भावनाएँ उदबुद्ध हो रही थी और मुझे मेवाड़ के राणा राजसिंह के ये शब्द याद पाए 'मस्जिद में मूल्ला की बांग सूनो अथवा मन्दिर से घण्टों को आवाज, दोनों का लक्ष्य एक ही परमात्मा है।' ऐसी ही स्थितियों में हमें अलौकिक देवी सुरक्षा के मधुर प्रभावों की अनुभूतियाँ होती हैं-जिनको छाप भावी जीवन से दूर नहीं होती और यह शिक्षा मिलती है कि नित्य-प्रति की मानवीय [भौतिक] वाञ्छाओं से परावृत्त होकर उस पथ से विलग होना चाहिए जो समस्त सांसारिक भोगों के लिए कितना ही महान् क्यों न हो परन्तु वही जीवन का चरम लक्ष्य नहीं है । यहाँ एकान्त नहीं है वरन् ऐसा प्रतीत होता है मानों प्रकृति अपनी सुन्दरतम कृतियों को लेकर सम्भाषण कर रही है। इसी मनोदशा में मेरा ध्यान रामायण के रात्रि वर्णन की ओर गया-रामायण, जो संसार में प्राचीनतम काव्य है, जिसकी रचना राम के आध्यात्मिक गुरु वाल्मीकि ने की है। प्राचीनकाल में ऐसी प्रथा थी (जो अभी विलुप्त नहीं हई है) कि राजा एवं सामन्त लोग निज के तथा अपने परिवार के लिए ऋषियों की कुटियों में जा कर नैतिक आदेश ग्रहण किया करते थे; यह उस समय का सुन्दर वर्णन है जब कि दोनों रघु-पुत्र राम और लक्ष्मण वाल्मीकि के आश्रम में गए थे और उन्होंने उनके पूर्वजों के पराक्रम का गान किया था। 'हे राघव ! आपका कल्याण हो, आप शयन करें, आपको निद्रा में कोई विघ्न न हो; सभी तरुवर निष्पन्द हैं, पशु-पक्षी निद्रामग्न हैं और प्रकृति का मुख रात्रि के अन्धकार से अवगुण्ठित है। संध्या धीरे-धीरे रात्रि में परिणत हो गई है और गगनाङ्गण में ज्योतिर्मय आकाश-गंगा एवं तारा-समूह चमक रहा है, मानों आकाश आँखों से भरा हुआ है । संसार से अन्धकार को भगाने वाले [चन्द्रमा] का उदय हो गया है और प्रफुल्ल रात्रि प्रानन्द से परिपूर्ण है ।" । ___ इन्हीं विचारों में डूबता-उतराता हुआ मैं सो गया और जब जागा तो वही समवेत-गान (Chrous) चल रहा था, परन्तु वह मुनि की स्तुति में था या कुबेर (पातालेश्वर) की प्रार्थना में अथवा अन्य किसी महान देवता के स्तवन में-इसकी मैंने पूछताछ नहीं की। प्रातःकाल सात बजे धुन्ध छाई हुई थी * Book 1. Sec. 30, Carcy and Marshman's Translation, 1808. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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