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प्रकरण - ६; देलवाड़ा का दृश्य
[ ११५ के पेड़ भी दिखाई पड़ते थे, जो फलों से लदे हुए थे परन्तु वे इतने कच्चे और हरे थे कि उन्हें देख कर यह प्रतीत होता था मानों वे कभी पकेंगे ही नहीं। लोग मेरे पास अंगर भी लाए, जिनकी आकृति से मुझे लगा कि वे · यहाँ पर बोए जाते हैं । ये (अंगूर या दाख) और चकोतरा, जिसे मैंने देखा तो नहीं परन्तु उन लोगों ने एक गहरी घाटी में बताया था, आबू के प्रधान फल माने जाते हैं। आम भी बहुत थे और लोबेलिया (Lobclia) जैसे नीले और सफेद सुन्दर फूलों के गुच्छों वाली एक घनी और सुन्दर बेल ने इनकी सेवार से ढकी हुई शाखाओं पर जड़ पकड़ ली थी। पहाड़ी लोग इस उप-पादप को [प्राम का उपजीवी होने के कारण] अम्बात्री कहते हैं, जो उनको बहुत प्रिय है क्योंकि मैंने देखा कि जहाँ कहीं यह उनके हाथ आता वे इसे तोड़ कर अपने पड़ों (काले बालों) में गूंथ लेते अथवा अपनी पगड़ी में खोंस लेते। नमी [आर्द्रता की अधिकता के कारण प्राय: पेड़ों पर घास अथवा काई का प्रावरण छाया रहता है और अचलगढ़ में तो ऊँचे-ऊँचे खजूर के पेड़ों की सबसे ऊपरवाली टहनियाँ तक इससे मँढी हुई थीं। काई अथवा घास के इसी जमाव में से ये उप-पादप फूट निकलते हैं। फूलों की तो यहाँ पर पूरी भरमार थी, जिनमें चमेली की और गुलाब की प्रायः सभी किस्में साधारण भाड़ियों की तरह उगी हुई थीं। सुनहरी चम्पा, जिसका पौधा फूल वाले पौधों में सबसे बड़ा होता है, जो मैदानों में शायद ही मिलता है और जिसके विषय में कहा जाता है कि वह अलोय की तरह एक शताब्दी में एक ही बार फल देता है, उसी चम्पा के पौधे यहाँ पर सौ-सौ गज की दूरी पर फूलों से लदे हुए लहलहाते थे और वायु को सुगन्ध से परिपूरित कर रहे थे। संक्षेप में यहाँ
"सभी प्रकार की सुन्दरताओं का समूह, झरने और घाटियां, फल, वनस्पति [पत्रावली] चट्टानें, वन, अनाज के खेत, पर्वत, अंगूर की बेलें,
और उजड़े हुए (स्वामिविहीन) किले थे, जो अपनी भूरी और पत्तं उगी हुई दीवारों में से गम्भीर बिदाई दे रहे थे और उनमें हरा विनाश निवास कर रहा था।"
देलवाड़ा से कोई एक मील की दूरी पर आधे से भी अधिक रास्ते तक ऊँची चोटी पर चढ़ कर एक चट्टान थी; वहीं गहरी दरार के किनारे आबू की रक्षिका देवी का मन्दिर है (जिसे सभ्य लोग अर्बुदा माता अथवा बुद्धि के पर्वत की माता कहते हैं) जिसका आधा भाग पत्रावली से ढका हुआ है । एक छोटा-सा नाला उस दरार से निकल कर कितने ही चक्कर काटता हुआ पहाड़ी के पूर्वीय ढाल पर कैरली (Karilie) की घाटी में बहता हुआ कुछ दूसरी नालियों के साथ बनास में जा मिलता है, जो यहाँ पर पहाड़ी के छोर के बिलकुल पास ही बहती
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