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पश्चिमी भारत की यात्रा है। हमने कुछ प्राचीन मन्दिरों और घरों के खण्डहर तथा गुफाएँ भी देखों जिनमें रह कर प्राचीन स्वर्णयुग के ऋषियों ने परब्रह्म' के चिन्तन में अपने जीवन व्यतीत किए थे । एक छायादार कुञ्ज में ऐसी सुन्दर कुटिया मिली जो मन को लुभाने वाली थी; कोई भी मनुष्य वहाँ के फल-फूलों पर जीवित रह कर पूरी गर्मी के दिन आनन्द से बिता सकता है ; हाँ, केवल पानी को, जो तीखापन लिए हुए है, कुछ शुद्ध करना पड़ेगा। थोड़ी ही दूर पर हमने नखो-तालाब देखा; यह लगभग चार सौ गज लम्बो बड़ी सुन्दर झील है, जिसका आनन्द लेने के लिए पूरे एक दिन की आवश्यकता थी परन्तु समय की तंगी के कारण मुझे इसकी झाँकी मात्र लेकर ही सन्तोष करना पड़ा। जिन्होंने राइन (Rhine) नदी पर एण्डरनॉच ( Andernach) से तीन मील ऊपर वाली झील को देखा है, मान लीजिए, उन्होंने इसकी प्रतिमूर्ति देख ली है । इसके चारों ओर चट्टानें हैं, जिनके किनारे तक जंगल आ गया है; जलमुर्गाब इसमें स्वच्छन्द विचरते हैं और दर्शकों का ध्यान भी इनको प्रोर कम ही जाता है क्योंकि इस पवित्र पहाड़ी पर शिकारी की बन्दूक और मछियारे के जाल को स्थान नहीं है; 'अहिंसा परमो धर्मः' यहाँ का सर्वोपरि आदेश है और इसकी अवहेलना का दण्ड मृत्यु है । इस झील का पानी अगाध बताया जाता है, परन्तु मुझे यहाँ ज्वालामुखी के लावा के चिह्न कहीं भी दिखाई नहीं दिए।
दो तीन सीधे से ढाल उतर कर मैं उस चोटी पर पहुंचा जहाँ से वसिष्ठ के मन्दिर को रास्ता जाता है। मैं उस दृश्य के लिए बिलकुल तैयार नहीं था अथवा इसे देखने के लिए दिन के खुले प्रकाश की आवश्यकता थी। यहाँ पर मैंने गाड़ी छोड़ दी थी क्योंकि मैं उसमें बैठा-बैठा थक गया था इसीलिए मैंने यह उपाय किया। एक गहरी खोह हमारे सामने थी और चट्टान के टूटे हुए अस्त-व्यस्त पड़े पत्थरों के अतिरिक्त उतरने का और कोई सहारा नहीं था; हमारे और गम्भीर गर्त के बीच में एक पतली-सी चट्टान मात्र थी। मेरे वृद्ध गुरु, जो मुझसे थोड़े आगे चल रहे थे, बिलकुल थक कर बैठ गए थे। अपनी विचित्र स्थिति में वे पहाड़ी पथ-प्रदर्शकों को पकड़ कर बैठे हुए थे। परन्तु स्थानीय सभी बोलियों के जानकार होते हुए भी उन्हें अपनी बात न समझा सके । अन्त में, उन पथ-प्रदर्शकों ने गुरुजी की बात का सारांश निकाल लिया। वे पूछ रहे थे, “यदि संयोग से मेरा पैर फिसल जाय तो में कहाँ जा पड़गा?" इसका सीधा-सा उत्तर उन्होंने यह दिया "बाप जी ! आप तो लम्बे रास्ते चले जाओगे।" प्राबू के धरातल पर यही सबसे अधिक भयानक दृश्य है। आधा रास्ता उतर चुकने पर ऊपर से भयावनी चट्टानें लटकती दिखाई पड़ती हैं तो
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