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________________ पश्चिमी भारत की यात्रा में घर पर बैठ कर किया। ग्रन्थ भी बहुत बड़ा और भाषा तथा भाव की दृष्टि से भी बड़ी प्रौढ शैली में लिखा गया है, अतः इसका अनुवाद कार्य सहज साध्य नहीं था। साथ में उनके संदर्भ ग्रन्थों का टटोलना, अज्ञात, अपरिचित स्थानों, व्यक्तियों आदि के बारे में यथाशक्य जानकारी प्रात करना आदि कारणों से अनुवाद के पूरे होने में काफी समय लगा। जब अनुवाद-कार्य पूरा होने आया तब मैंने इसको इस 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' द्वारा ही प्रकाशित करना अधिक उपयुक्त समझा, क्योंकि टॉड जैसे राजस्थान के परम हितैषी और परम सुहृद् विद्वान् की एक अद्वितीय कोटि की रचना का राष्ट्र-भाषा में किये गये अनुवाद को प्रकाश में रखने का पवित्र कर्तव्य 'प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान' से अधिक और किसका हो सकता है ? अतः मैंने इसे प्रस्तुत ग्रन्थमाला की मणियों में स्थान देना सर्वथा उचित और उपयुक्त समझा। मेरे इस विचार की सह-परामर्शदाता विद्वानों ने भी पुष्टि की। कोई १०-११ वर्ष के सतत परिश्रम बाद अब यह ग्रन्थ पाठकों के करकमलों में उपस्थित हो रहा है। श्री बहराजी ने जिस लगन और साधना के साथ इस सुन्दर अनुवाद का कार्य सम्पन्न किया है उसके लिये मैं इन्हें अपना हार्दिक अभिनन्दन देने के सिवाय और क्या कर सकता हूँ? ये मेरे इतने निकटस्थ और आत्मीय जन हैं कि इनके कार्य के विषय में कुछ भी विशेष कहना सही स्वारस्याभिव्यञ्जक नहीं होगा। बहुविद्या-व्यासंगी और मर्मज्ञ इतिहासविद् महाराजकुमार डॉ. श्री रघुवीरसिंहजी (सीतामऊ) ने इस पुस्तक की सारगर्भित प्रस्तावना लिखने की जो सौहार्दपूर्ण तत्परता दिखाई है, उसके लिये मैं इनके प्रति ग्रन्थमाला के सञ्चालक के रूप में भी अपना हार्दिक धन्यवाद प्रदान करता हूँ। १५, अगस्त १९६५ ई० राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, --मुनि जिनविजय जो ष पुर. ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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