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पश्चिमी भारत की यात्रा
रविश भी उतनी ही आकर्षक है परन्तु खम्भों में सादगी अधिक है । रविश की छत के विभागों में भी काम उतना ही मूल्यवान है परन्तु इनमें स्पष्टता अधिक है । छतों में (जिनकी संख्या ६० से कम नहीं हैं) जो कुराई का घना काम हो रहा है उसमें वन- देवों, देवताओं, किन्नरों और योद्धाओं के साथ-साथ जहाजें भी उत्कीर्ण हैं, जो इस बात की द्योतक हैं कि निर्माताओं ने समुद्री व्यापार के द्वारा ही वह अतुल धन राशि एकत्रित की थी; और उस समय, जब कि गौरवपूर्ण प्रणहिलवाड़ा नगर और उससे भी अधिक गौरवान्वित वहाँ के 'बाल्हाराय ' राजाओं की समृद्धि का सूर्य चरम सीमा पर चमक रहा था, उनके जहाज सभी पड़ोसी राज्यों में जाते थे और वहाँ का माल ला कर समस्त हिन्दू-भूमि (हिन्दुस्तान) में वितरित करते थे । जब मेरी दृष्टि प्रसन्नता के साथ इन हिन्दू महापोतों पर अटक रही थी तो इनके विवरण में वह कुछ ऐसी वस्तु पर जा अटकी जिसमें से एक शास्त्रीय बहु-देवतात्मक मन्दिर की गन्ध आ रही थी और यह बात किसी पाश्चात्य बुद्धि के समझ लेने के लिए बहुत ही रहस्यमयी थी । यहाँ, उस मिले-जुले जहाजी बेड़े में ग्रीक वन-देवता पॅन' की शकल दिखाई दी, जिसके शरीर का अधोभाग बकरे जैसा था और उसके मुँह में बांसुरी मौजूद थी । पूर्व की ओर रविश के खम्भों के मध्य भाग में सजावट है; वहाँ हाथियों का एक . जलूस बनाया गया है- -उन पर सवार, ढोल और पूरा साज-सामान मौजूद है; प्रत्येक हाथी एक ही संगमर्मर के पत्थर में कुराया गया है, जिसकी बनावट साधारण है और ऊँचाई चार फीट । सामने ही गोलाकार पीठिका पर स्थित एक वैसा ही स्तम्भ है जैसा कि पहले वाले मन्दिर में देखा था । विभिन्न प्रकोष्ठों में वेदियों पर विराजमान जिनेश्वरों की मूर्तियाँ ( जो प्रत्येक चार फीट के लगभग ऊँची है) सर्वथा दर्शनीय हैं। परन्तु इन मन्दिरों की विभिन्न विशेषताओं और समृद्धि का पृथक् पृथक् वर्णन करना बहुत कठिन है; और आबू का गौरव बने हुए, इन देवालयों के आस-पास निर्मित अन्य मन्दिरों की निर्माण कला का विवरण देना भी यहाँ पर असंगत-सा ही प्रतीत होता है, यद्यपि परिमाण में वे इन उपरिणित मन्दिरों से भी बड़े हैं । जैसे, उदाहरण के लिए, भीने-शाह (Bheenia Sah) (भीमा या भीना) का मन्दिर, जो निर्माता के नाम से ही आज तक प्रसिद्ध है, प्रकृति और शैली में अन्य मन्दिरों से सर्वथा भिन्न है; यह चार खण्ड ऊँचा और सादड़ी की घाटी वाले मन्दिर से मिलता हुआ है । कहते हैं कि इसमें प्रतिष्ठित जिनेश्वर की पीतल की मूर्ति १४४० ४ मन भारी है, जो
१ ग्रीक चरागाहों और भेडों के गल्लों का देवता जो Arcadia (आर्केडिया ) में पूजा जाता है ।
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