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________________ प्रकरण - ५, वृषभदेव का मन्दिर बने हुए हैं जिनकी छतें चपटी हैं । प्रत्येक कोठरी में प्रवेश द्वार के सामने ही एक ऊँची वेदी बनी हुई है जिस पर चौबीस जिनेश्वरों में से किसी एक की प्रतिमा विराजमान है। दो-दो खम्भों के बीच में अनुरूप स्तम्भों पर टिकी हुई मेहराबों से प्रत्येक कोठरी के लिए अलग-अलग ड्योढी सी बन जाती है और चार-चार खम्भों के बीच प्रत्येक विभाग पर मेहराबदार अथवा चपटी छतों के कारण ये और भी स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं । सम्पूर्ण मन्दिर स्वच्छ सफेद संगमर्मर का बना हमा है। प्रत्येक खम्भे, छतरी और वेदी की बनावट व सजावट अलग-अलग तरह की है और निर्माण-कला की बारीकी एवं समृद्धि वर्णनातीत है। प्रदावन कक्षों में से प्रत्येक का अध्ययन करने के लिए एक-एक पूरा दिन लगाने की प्रावश्यकता है और इसका खाका तैयार करने के लिए तो बहुत ही बारीक पेंसिल की अपेक्षा होगी। कहते हैं कि भिन्न-भिन्न कोष्ठों का निर्माण भिन्न-भिन्न नगरों के जैन-मतावलम्बी धनी व्यक्तियों ने कराया था, इसी कारण इनमें प्रत्येक की शैली और सजावट में भिन्नता पाई जाती है परन्तु सम्पूर्ण मन्दिर की अनुरूपता एवं सुडौल बनावट यह प्रमाणित करती है कि इसकी योजना एवं निर्माण किसी एक ही विशेषज्ञ के मस्तिष्क की उपज है; केवल दक्षिण-पश्चिमी कोने पर कुछ भिन्नता स्पष्ट रूप से लक्षित होती है, (सम्भवतः वह भाग किसी दूसरे ने निर्माण कराया हो।) वेदियाँ शुद्ध और सादे ढंग से बनी हुई हैं परन्तु खम्भों के काम पर धन, श्रम, कौशल और रुचि का खुलकर प्रयोग किया गया है। इनमें से प्रत्येक पर जैन वास्तुकलागत स्तम्भ-सम्बन्धी नियमों के उदाहरण मौजूद हैं। प्रत्येक कोष्ठ में उस व्यक्ति के इष्टदेव की मूर्ति विराजमान है, जिसके व्यय से उसका निर्माण हुआ है और निर्माणकाल • सम्बन्धी लेख प्रत्येक दरवाजे की देहली के अन्दर की ओर खुदा हुमा है। अब हम चौकोर पत्थर जड़े हुए चौक में उतरते हैं और इसको पार करके वृषभदेव के मन्दिर के सामने सभा-मण्डप में पहुंचते हैं। सब से पहले हिन्दूस्थापत्य (शास्त्र) में मण्डप शब्द का विवरण दे देना ठीक रहेगा । यह शब्द जैन-शैली की अपेक्षा शैव-पद्धति से अधिक सम्बद्ध है और सम्भवतः अपर शैली से ही जैनों ने इसको अपनाया है । मण्डप चाहे गोल हो या चौकोर और इसकी छत गुम्बदाकार हो अथवा पिरामिड की शकल की परन्तु वह खुले स्तम्भों पर टिकी रहती है। शव-मन्दिरों में यहां पर पार्षद बैल [नन्दी] रहता है और प्रधान देवता [शिवलिङ्ग अन्दर के कोष्ठ में विराजते हैं। जिस किसी ने पुखोली (Puzronli) के ज्यूपिटर सॅरापिस (Jupiter Serapis) के मन्दिर की ग्रीक लोगों ने मिस्र के एपिस (Apis) और मासिरिस (Ostis) के गुणों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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