________________
ढ]
पश्चिमी भारत की यात्रा
गुजरात के अनेकानेक स्थानों का बहुत ही सुन्दर रूप में सविस्तार वर्णन लिखा हुआ है । इस दृष्टि से चन्द्रावती के खण्डहरों को देखने भी हम, गुजरात विद्यापीठ के हमारे एक साथी प्रोफेसर श्री एन. आर. मलकानी के साथ, गये । यद्यपि हमें उस समय टॉड का दिया हुआ कोई भी दृश्य वहाँ नहीं दिखाई दिया - केवल कुछ खंभे कहीं-कहीं खड़े दिखाई दिये, परंतु हमको चन्द्रावती के प्राचीन इतिहास की और वैभव की बहुत अधिक जानकारी थी जिसकी कर्नल टॉड को कल्पना भी नहीं थी । तब भी टॉड ने अपने इस ग्रन्थ में चन्द्रावती के जिन खण्डहरों के चित्र दिये हैं, उन्हीं को देख कर हम उस स्थान पर मुग्ध हो गये थे । इसलिए हमने एक साथी अभ्यासी को टॉड द्वारा लिखित सर्वप्रथम चन्द्रावती के वर्णन का अनुवाद करने का काम सौंपा। हमारा विचार, गुजरात पुरातत्त्व मन्दिर के तत्त्वावधान में हम जो पुरातत्त्व' नामक संशोधनात्मक उच्चकोटि का त्रैमासिक पत्र प्रकट कर रहे थे, उसी में क्रमश: टॉड के इस महत्त्व के ग्रन्थ के प्रकरण प्रकाशित करने का था ।
सन् १९२८ ई० में हमारा विदेश में - युरोप में जाना हुआ । हमारे छोड़े बाद गुजरात पुरातत्त्व मन्दिर का काम प्रायः स्थगित सा हो गया । गुजरात के इतिहास से सम्बन्धित जो बहुत विशाल सामग्री हमने एकत्रित की थी- वह हमें अपने बक्सों में बंद कर देनी पड़ी । बाद में, दो वर्ष बाद हम युरोप से लौटे और शान्ति निकेतन में जाकर 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला' का प्रकाशन कार्य प्रारम्भ किया- तब हमने फिर उस सामग्री में से चुन चुन कर, ग्रन्थमाला में प्रकाशित करने योग्य ग्रन्थों का प्रकाशन भी शनैः शनैः हाथ में लिया ।
सन् १९४०-४१ ई० में बम्बई के भारतीय विद्याभवन के नॉनरेरी डायरेक्टर का काम संभाला तब फिर हमारे मन में, टॉड की इस कृति का गुजराती या हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध करने की वह पुरानो लालसा जागृत हो गई। हमारे पास उस समय दो चार हिन्दी-भाषी अभ्यासी थे उनमें से हमने एक-दो को इसका हिन्दी अनुवाद करने को कहा । नमूने के तौर पर हमने कुछ पृष्ठों का अनुवाद भी कराया परन्तु ग्रन्थ की शैली और महत्त्व को देखते हुए हमको उनका ग्रनु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org