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सञ्चालकोय वक्तव्य कर्नल टॉड द्वारा लिखित 'राजस्थान का इतिहास' ग्रन्थ, उसमें उल्लिखित राजस्थान की अनेक रोमांचक कथाओं के कारण तथा उसकी रसभरी वर्णन शैली के कारण, बहुत लोकप्रिय हुआ । इसलिए उसको प्रसिद्धि भी बहुत हुई। परन्तु, प्रस्तुत यात्रा-विवरण एक अन्य प्रकार की सामग्री प्रस्तुत करता है और यह उसके जीवनकाल में प्रकट भी न हो सका, इसलिए इसकी कोई वैसी विशेष प्रसिद्धि नहीं हुई और न इसके प्रथम संस्करण के बाद कोई नई प्रावृत्ति ही प्रकट हुई। पिछले लेखकों ने इसका कोई विशेष उल्लेख भी नहीं किया। अतः एक प्रकार से यह रचना भारत के जिज्ञासुओं को अप्राप्य सी ही रही ।
* ____टॉड का 'इतिहास' तो हमने बहुत पहले पढ़ लिया था और हमारा वह एक बहुत प्रिय ग्रन्थ बन गया था । जैन-भण्डारों में संचित नाना प्रकार के ऐतिहासिक ग्रन्थों आदि का जब हमने अवलोकन और अन्वेषण करना शुरू किया तो टॉड के इतिहास को अनेक अपूर्णताओं और भ्रान्तियों पर भी हमारा लक्ष्य गया। हमने इस दृष्टि से उपलब्ध साधन-सामग्री का संकलन करना भी प्रारंभ कर दिया था। पर जब यह मालूम हुआ कि स्व० अोझाजी अपनो टिप्पणियों के साथ 'राजस्थान का इतिहास' का एक नूतन संस्करण निकाल रहे हैं तब हमने अपने कार्य को आगे नहीं बढ़ाया। इस विषय में म० म० अोझाजी के साथ हमारा कुछ पत्र-व्यवहार भी हुआ था।
कुछ वर्षों बाद हमें टॉड कृत प्रस्तुत यात्रा-विवरण का पता लगा। बड़ी कठिनता से बडौदा में सन् १९१५ में, हमें इसकी एक छपी हुई पुस्तक मिली । हम, यथावकाश इसे पढते रहे और हमें यह राजस्थान के इतिहास की ही तरह बहुत प्रिय रचना लगी। गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद के 'पुरातत्त्व मन्दिर' के एक मुख्य संस्थापक एवं प्राद्यनियामक प्राचार्य पद पर रहते हुए हमने इसका गुजराती भाषा में अनुवाद करा कर प्रकट करने का विचार किया क्यों कि इसमें प्राबू, चन्द्रावती, अणहिलपुर-पाटण, शत्रुजय, गिरनार, सोमनाथ, द्वारका आदि
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