________________
ठ ]
पश्चिमी भारत की यात्रा
ऐतिह्य जानकारी को लिपिबद्ध किया है, जिसका उसने अपने इतिहास के लेखन में उपयोग नहीं किया था तथा इसमें उन स्थानों, तीर्थों, मन्दिरों आदि का वर्णन है, जिनको 'राजस्थान के इतिहास' में स्थान नहीं मिला तथापि जो राजस्थान के इतिहास से घनिष्ठ संबन्ध रखते हैं; उदाहरणार्थ -- प्राबू पहाड़, जो राजस्थान का सर्वोच्च और सुरम्य पर्वत है, गुजरात और राजस्थान के इतिहास का केन्द्र बिन्दु है, सारे भारत के हिन्दुओं का परमपावन तीर्थ है, भारत को मध्य कालीन स्थापत्य - समृद्धि के सर्वोत्कृष्ट प्रतीक स्वरूप दिव्य देवमन्दिरों के मुकुट को अपने मस्तक पर धारण करने के कारण समस्त मध्य पश्चिमी भारत का नगाधिराज है, उस की यात्रा करने वाला वह प्रथम अंग्रेज है और संसार में इसकी सर्वप्रथम प्रसिद्धि करने वाला वही महान् लेखक है। ऐसे ही, उसने शत्रुंजय, गिरनार, द्वारका, सोमनाथ, श्रादि पवित्र तीर्थ स्थानों के भी सुन्दर और भावपूर्ण वर्णन लिखे हैं । वह केवल शुष्क प्रवासी नहीं है परन्तु बहुत भावुक, प्रकृति-प्रिय, कलाप्रेमी, मर्म खोजी और अत्यन्त कल्पनाशील लेखक है। किसी भी प्राचीन सुरम्य स्थान, प्राचीन कलाकृति, प्राचीन भग्नावशेष को देख कर उसके मन में नाना प्रकार के भावों का आन्दोलन सा मच जाता था, जिनको बड़ी कठिनाई से समेट कर वह अपनी लेखनी द्वारा कागज पर प्रालेखित करता रहता था। वह युरोप के इतिहास का भी महान् ज्ञाता था । उसके समय तक प्रसिद्धि में प्राई हुई सैकड़ों ही इतिहास की पुस्तकों का उसने अवलोकन कर लिया था और जहाँ कहीं भी उसको अपने लेखोद्दिष्ट वर्णन में कोई सादृश्यसूचक उल्लेख का स्मरण हो आता, वहीं वह उसका उल्लेख करने के प्रसंग से नहीं चूकता था । इसलिये उसके प्रस्तुत यात्रा विवरण में ऐसे सैंकड़ों हो उल्लेख मिलते हैं, जिनका पता लगाना भी कठिन हो जाता है। उसकी बुद्धि सर्वग्राहिणी थी उसकी प्रतिभा सर्वतोमुखो थी, उसकी जिज्ञासा अपरिमित थी, उसका परिश्रम अथक था, इसलिये इस ग्रन्थ में उसके उक्त गुणों के निदर्शक सभी चित्र संचित हुए हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org