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________________ सञ्चालकीय वक्तव्य कारण उसके मन में राजपूत जाति के मुख्य केन्द्रभूत इस विशाल भूभाग को, जो अति प्राचीन काल से मेवाड़, मारवाड़, वागड़, जांगल, सपादलक्ष, शाकंभरी, मत्स्य आदि प्रदेशों के नाम से विभक्त था और जिसके शासक राजवंश भिन्न-भिन्न प्राचीन राजकुलों की सन्तान और उत्तराधिकारी थे और ये सब परस्पर सदैव अपने राज्य की रक्षा और वृद्धि करने के लिए संघर्ष करते रहते थे, उन सब राज्यों और प्रदेशों का एक ही नाम में समावेश कर महान् ‘राजस्थान' के भव्य नाम के निर्माण की अद्भुत कल्पना उद्भूत हुई। इसके पहले 'राजस्थान' यह नाम किसी भी प्रदेश विशेष के लिए कभी किसी ने प्रयुक्त नहीं किया, और न कर्नल टॉड के सिवाय अन्य किसी ने भी उस समय इस नाम को महत्व ही दिया। अंग्रेजी शासन ने अपने शासन-तंत्र की व्यवस्था की दृष्टि से राजपूतों के राज्यों के समूह वाले इस प्रदेश का 'राजपूताना' नाम निर्धारित किया और फिर सब प्रकार का व्यवहार इसी नाम से प्रचलित और प्रसिद्ध होता रहा । यहाँ तक कि बाद के राजस्थान के इतिहास लेखकों में मुकुटमणि-समान स्वर्गीय म० म० पंडित गौरीशंकरजी अोझा ने भी अपनी महान् ऐतिहासिक रचना का नाम 'राजपूताने का इतिहास' ऐसा ही देना पसन्द किया। इस प्रदेश की जो प्रथम युनिवर्सिटी जयपुर में बनी वह भी प्रथम 'राजपूताना युनिवर्सिटी' के नाम से अलंकृत हुई। भारत में जब अंग्रेजी प्रभुसत्ता का अन्त हुआ और स्वतन्त्र भारत का नवनिर्माण हुआ तब अन्यान्य राज्यों के संगठन के साथ राजपूताना के राज्यों का विलीनीकरण होकर प्रजातंत्रात्मक नूतन राज्य की स्थापना के समय, भारत को सर्वोच्च सार्वभौम सत्तास्वरूप लोकसभा ने इस नूतन महा-जनपद का वही भव्य नाम स्वीकृत किया जो महामना कर्नल टॉड ने इसे प्रदान किया था। प्रस्तुत 'पश्चिमी भारत की यात्रा' नामक रचना भी कर्नल टॉड के उक्त इतिहास के समान ही मौलिक, रसप्रद और ज्ञातव्य वर्णनों से भरपूर है । इस यात्रा-विवरण के लिखने में उसने अपनी उस विशाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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