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· प्रकरण - ५, अचलगढ़
[ ६५ हिमाचल का पुत्र मुनि की आज्ञानुसार गर्त में कूद पड़ा, परन्तु उसका मित्र तक्षक उसे छोड़ने को तैयार नहीं था इसलिए अपने दांतेदार लपेटों में घेरे डाल कर उसे अपने आलिङ्गन - पाश में जकड़े रहा । अपने इस बलिदान के लिए उन्होंने प्रतिज्ञा की कि उनके नाम उस चट्टान (पर्वत) के नाम के साथ संयुक्त कर दिए जायें। तभी से इसका नाम अर्बुध पड़ा अर् अर्थात् पहाड़ और बुध् अर्थात् बुद्धि, सर्प जिसका द्योतक है। परन्तु, या तो पर्वतों के पिता (हिमालय) का यह अंश गर्त को भरने के लिए पर्याप्त नहीं हुअा अथवा स्थान-परिवर्तन से दुखी होकर सर्प ने इतने मरोड़े लिए कि वसिष्ठ को इस भूकम्प को हलचल बन्द करने के लिए महादेव (Divinity) का पुनः स्मरण करना पड़ा । तब शिव ने पाताल लोक से अपना पैर पृथ्वी के केन्द्र तक फैलाया यहाँ तक कि उनका अंगूठा पर्वत की चोटी पर स्पष्ट दिखाई देने लगा। भूचाल बन्द हो कर पर्वत अचल हो गया और ईश्वर के अंगूठे पर मन्दिर का निर्माण हुआ। इस लिए यह अचलेश्वर कहलाया।
यदि इस पाख्यान का तात्पर्य समझा जाय तो मैं कहूँगा कि पृथ्वी-रूपिणी गाय का गर्त में पड़ जाना मानवीय अन्याय एवं पक्षपात का द्योतक है और शिव-पूजकों के पूजा-विधान में बाधा देने वाले दैत्य नास्तिक (विधर्मी) सम्प्रदाय वाले लोग थे । गर्त को भर देने वाले हिमाचल के पुत्र से किसी उत्तरदेशीय उपनिवेश अथवा जाति से तात्पर्य हो सकता है जिसकी वसिष्ठ द्वारा परिशुद्धि (Conversion) ने शायद अग्निकुण्ड से उत्पन्न अग्निवंश के उपाख्यान को जन्म दिया हो-जहाँ अचलेश्वर के मन्दिर का निर्माण हुआ है। ___ इस चट्टान की दरार को देवड़ा सरदारों ने शक्ति की प्रतिमा जैसी एक चांदी की चद्दर से मढ़वा दिया था। कहते हैं कि प्रत्यक्ष ही पाताल (नरक) से न डरने वाले किसी भील ने इस मूल्यवान् धातु को चुरा लिया था। वह कोई एक मील भी न जाने पाया था कि बिलकुल अन्धा हो गया। इस दण्ड के कारण पश्चात्ताप से पीड़ित हो कर उसने अपने उस लोभ के पात्र [चाँदी की चद्दर को एक पेड़ से लटका दिया। जब वह ढूंढने वालों को मिल गया तो उसके पश्चात्ताप के कारण उसकी दृष्टि लोट पाई। मूर्ति को अग्नि में शुद्ध कर के फिर से ढाल कर दरार पर पुनः संस्थापित कर दिया गया। इस से भी बढ़कर साहसपूर्ण अधामिक कृत्य का प्रमाण तो उस व्यक्ति के विषय में मिलता है, जिसका इस मन्दिर की रक्षा करना मुख्य कर्तव्य था। प्राबू और चन्द्रावती के परमार राजा ने ब्रह्मखाळ के अनवगाहनीय (Athar) (अथाह) उपाख्यान की सचाई का पता लगाने का निश्चय कर के, मन्दिर के पास वाले झरने में से एक नहर निकाल ली, जिसमें छः
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