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________________ पश्चिमी भारत की यात्रा महीनों तक कोई प्रत्यक्ष परिणाम लाए बिना लगातार पानी बहता रहा। अचलेश्वर के रहस्य का अवगाहन करने के इस प्रयत्न के फलस्वरूप वह परमार राजा चन्द्रावती के सिंहासन से च्युत कर दिया गया और वही अपने वंश का अन्तिम राजा हुआ।' ___ जुन १३ वी-प्रातः ६ बजे में अग्निकुण्ड से अचलगढ़ के लिए रवाना हुआ जिसकी टूटी-फूटी छतरियाँ हमारे चारों ओर घिरे हुए घने बादलों में डूबी हुई थीं। चढ़ाई के इस स्थान पर थर्मामीटर ६६° और बॅरॉमीटर २७° १२' अंशों पर थे तथा ८ बजे (प्रातः) शिखर पर बरॉमीटर २६° ६७' और थर्मामीटर ६४° बतला रहे थे। किसी जमाने के इस राजकीय आवास में मैंने हनुमान दरवाजे से प्रवेश किया। यह दरवाजा यानिट के बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित दो विशाल छतरियों से बना हुआ है जो हजारों शरत्कालीन हवा के निर्मम झोंके खा-खा कर काली पड़ गई हैं। दोनों छतरियाँ ऊपर की ओर एक कमरे से जुड़ी हई हैं, जो रक्षकों के ठहरने के लिए बना हुआ था और दरवाज़ा नीचे के किले का प्रवेश द्वार है जिसकी टूटी-फूटी दीवारें इस विषम चढ़ाई में कहीं-कहीं दिखाई पड़ जाती हैं। दूसरे दरवाजे के पास ही सुन्दर चम्पा का पेड़ उगा होने के कारण वह चम्पापोल कहलाता है, परन्तु पहले से उसका नाम गणेश-द्वार (Gate of Wisdom) पड़ा हुआ है; यह दरवाज़ा किले के भीतरी हिस्से में जाने का है। इस पिछले दरवाज़े से अन्दर घुसते ही सबसे पहले जो चीज सामने पड़ती है वह पार्श्वनाथ का जन-मन्दिर है, जिसको मांडू के श्रेष्ठो ने अपने खर्चे से बनवाया था और जिसकी आजकल मरम्मत हो रही है। इसके खम्भे उसी भाँति के हैं जैसे अजमेर के प्राचीन मन्दिर के। ऊपर के किले के विषय में , मुंता नेणसी की ख्यात तथा बड़वों की पुस्तकों में 'हूण परमार' नाम लिखा है, परन्तु शिलालेखों में कोई नाम नहीं मिलता। सि. रा० इ०, पृ. १८८ । रा० प्रा० वि०प्र० से प्रकाशित मुंहता नैणसीरी ख्यात (मूल) में भी 'हूण' का उल्लेख नहीं है। . मालवा के सुलतान गयासुद्दीन के प्रधान अमात्य संघवी सहसा सालिग के पुत्र ने महाराव जगमाल (१५४०-१५८० वि०) के समय में यह मन्दिर बनवाया था, जिसकी प्रतिष्ठा श्री जयकल्याण सूरि ने सं० १५९६ वि० में कराई। -Holy Abu-Jayantavijai p. 145 3 किंवदन्ती है कि अजमेर का 'ढाई दिन का झोंपड़ा' मूलतः एक जैन मन्दिर था जिसको शाहबुद्दीन गोरी ने मसजिद में परिवर्तित करा दिया था। तब वहाँ की देव-प्रतिमा अजमेर की गोदा गली में नया मन्दिर बनवा कर प्रतिष्ठित की गई। वही यहाँ का प्राचीनतम मन्दिर माना जाता है। Ajmer; Harbilas Sarda; p. 447 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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