SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४] पश्चिमी भारत की यात्रा परमात्मा करे किसी का अपवित्र हाथ प्रादिपाल को भविष्य में यहाँ से न हटाए ! अचलेश्वर का उपाख्यान आबू और अग्निवंश के इतिहास के साथ अविच्छेद्य रूप से सम्बद्ध है, जिसको शिव ने दैत्यों से युद्ध करने के लिए उस समय उत्पन्न किया था जब उन्होंने इस प्रिय पर्वत पर से शिवार्चन को बहिष्कृत कर दिया था। यह टीटनों (Titans) द्वारा ज्युपीटर (Jupiter) के विरुद्ध युद्ध-संचालन के ग्रीक उपाख्यान' की अपेक्षा कम परिष्कृत अवश्य है परन्तु रूपरेखा वही है । 'इतिहास' में इसका वर्णन किया जा चुका है। अतः यहाँ पर अर्बुद की उत्पत्ति से सम्बद्ध केवल चमत्कारिक पौराणिक अंश को ही पूरक के रूप में प्रस्तुत करता हूँ। 'मानव की निष्पाप और सात्विक अवस्था के स्वर्णयुग में यह स्थल शिव और उसके लक्षाधिक गणों का प्रिय स्थान था और वे सभी इस हिन्दू विश्वदेवालय पर साक्षात् एकत्रित होते थे। यहां पर ऋषि, मुनि, शिव के प्रतिनिधि वसिष्ठ मुनि की अध्यक्षता में, पृथ्वी पर स्वत: उत्पन्न होने वाले कन्द, मूल, फल खाकर एवं दूध पीकर अपना समय तपस्या और प्रार्थना में व्यतीत करते थे। उस समय यहाँ पर्वत नहीं था और सम्पूर्ण अरावली का भूभाग समतल था। वस्तुतः इस स्थान पर एक विशाल गर्त अथवा कुण्ड था जिसकी गहराई नापी नहीं जा सकती थी। इसमें मुनि की कामदुघा गौ गिर कर पानी के चढ़ाव के साथ चमत्कारपूर्ण ढंग से निकल पाई थी। ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए मुनि ने बर्फीले कैलास-पर्वत पर निवास करने वाले शिव का स्तवन किया। उन्होंने यह प्रार्थना सुन ली और हिमाचल को बुला कर पूछा कि उनके हिमाच्छादित निवासस्थान से निकल कर प्रात्म-त्याग का परिचय देने वाला कौन है ? इस पर हिमाचल का कनिष्ठ पुत्र प्रादेश का पालन करने के लिए तैयार हुआ परन्तु वह पंगु था इसलिए यात्रा करने में असमर्थ था। अतः सर्पराज तक्षक उसे अपनी पीठ पर ले जाने को प्रस्तुत हुए। इस प्रकार उन्होंने उस स्थान की यात्रा को जहाँ पर मुनि वसिष्ठ निवास करते थे। अपने प्रागमन का उद्देश्य सुना कर 'ग्रीक पौराणिक गाथाओं के अनुसार 'टीटन्' स्वर्ग और पृथ्वी की प्रादिसन्तान माने गये हैं । इनकी संख्या दस थी जिनमें पांच पुरुष और पांच स्त्रियां थीं। जुपिटर के अवैध पुत्र डायोनिसस की नृशंस हत्या के षड्यन्त्र में ये जुपिटर की वैध पत्नी जूनो के साथ मिल गये थे अतः जुपिटर ने इनके साथ युद्ध किया और यातना देकर उनका अन्त कर दिया। -The Golden Bough, James Frazer, vol. II; 1957, p. SIL . भा. १, पृ १०८; Ed. W. Crooke. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy