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________________ प्रकरण - ५; अचलेश्वर को हिन्दू ऑलिम्पस (देवपर्वत) के साथ सम्बद्ध करने वाले पाख्यान में कल्पना का एक ऐसा आकर्षण प्रतीत हुआ कि मूर्ति को उसके आशंकापूर्ण स्थान से हटा कर अग्निकुण्ड के शिखर पर स्थापित करने की मेरी इच्छा प्रबल हो उठी। परन्तु सद्विचारों ने इसमें बाधा डाल दी। यह उसकी जाति का उद्गम-स्थान था और यहीं पर उन लोगों को कठिन तपस्या के द्वारा पुनर्जीवन प्राप्त हुआ था। मुझे यहाँ पर लॉर्ड बॉयरन रचित पार्थिनॉन' के लुटेरे के विषय में 'ईश्व. रोय शाप' नामक कविता भी याद आई : "क्या कभी बृटिश-वारणी कहेगी कि एल्बिमॉन एथना के अश्रुनों से सुखी था ? यद्यपि तेरे नाम पर दास उसकी छाती रौंदते हैं परन्तु लज्जित यूरोप के कानों में यह बात न डालो ! समुद्र की रानी बरतानियाँ रक्त रंजित भूमि से अपहृत अंतिम अकिञ्चन वसु को लिए हुए है। हाँ वहा, जिसकी उदार सहायता उसके नाम में आकर्षण पैदा करती है, उसी ने उन अवशेषों को दानवीय करों से छिन्न भिन्न कर डाला जिनको ईर्ष्यालु एल्ड ने सहन किया और अत्याचारियों ने भी छोड़ दिया था। ' एथेन्स स्थित Athene अर्थात् सरस्वती का मन्दिर। इसका नक्शा इक्टिनस (Ictenus) ने बनाया था और ई० पू० ४३८ में यह बनकर तैयार हुअा था। यह सम्पूर्ण मन्दिर सफेद संगमर्मर का बना हुआ था और इसमें फीडियास ( Phidias ) द्वारा बनाई हुई एथना की स्वर्ण प्रतिमा विराजमान थी। इसके पश्चिमी कक्षों में असंख्य चांदी के प्याले और अन्य बहुमूल्य सामग्री एकत्रित थी। यह राष्ट्रीय कोषागार कहलाता था। यह सामान विविध पर्वो पर उपयोग में आता था। इस मन्दिर को फारसियों ने विध्वस्त करके लूट लिया था परन्तु पॅरिक्लीज़ (ई० पू० ४६०-४२६) ने और भी शान-शौकत के साथ इसका पुनरुद्धार कराया। सम्भवतः कुस्तुन्तुनिया के सम्राट् जस्टीनियन प्रथम (५२७-५६५ ई०) के राज्य में इसको गिर्जाघर में परिवर्तित कर दिया गया था। १४५३ ई० के कुछ समय बाद इसको मस्जिद का रूप दे दिया गया और अन्त में १६८७ ई० में वेनिशियनों द्वारा एथेन्स के घेरे के समय बारूद के विस्फोट से यह बिलकुल नष्ट हो गया। -The Oxford Companion of English Literature; Paul Harvey; p. 594. • Albion (एलबिॉन)- प्राचीन कवियों द्वारा प्रयुक्त ब्रिटेन का नाम । सम्भवतः गॉल (Gaul) के समुद्रीय तट से दिखाई देने वाली सफेद चट्टानों के कारण ही यह नाम दिया गया था । ३ लन्दन नगर का मुख्य पूर्वीय दरवाज़ा जो पहले Algate या Alegate कहलाता था। इस दरवाजे पर बने मकान में कुछ समय तक सुप्रसिद्ध कवि चॉसर भी रहा था, जब वह राहदारी विभाग का अध्यक्ष था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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