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________________ प्रकरण • ५; प्रादिपाल की मूर्ति [१ से अधिक सुखदायक साधन (माना गया) है । अग्निकुण्ड के पूर्व की ओर परमार जाति के संस्थापक आदिपरमार के पवित्र मन्दिर के अवशेष धराशायी हो चुके हैं। परन्तु प्रादिपाल की मति अपनी आधार-शिला पर सही-सलामत खड़ी है जो मेरी अब तक रखी हुई वस्तुओं में सबसे अधिक रुचि का विषय थी। यह मति पुरातन प्रकार,प्राचीन वेशभूषा और आदिकालीन वास्तविकतामों का नमूना है। सफेद संगमरमर की बनी हुई यह मूर्ति लगभग पांच फीट ऊँची है और मूर्तिकला में बाडोली के स्तम्भों पर बनी हुई मूर्तियों के अतिरिक्त भारत में मेरे द्वारा देखी हुई सभी मतियों से बढ़कर है। परमार एक तीर से भैंसे के सिरवाले 'भैसासुर' को मार रहा है जो रात के समय अग्निकुण्ड का पवित्र पानी पी जाया करता था; इसी की रक्षा के लिए परमार की सृष्टि हुई थी। तीर मभी घुसा ही है जिससे उसके अचूक लक्ष्य एवं मांसल भुजामों का प्रभाव तीन घावों के रूप में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है, जिनमें हो कर तीर ऊपर की खाल. व बीच में आने वाले सभी अवरोधों को पार करता हुमा ठेठ तक पहुंच गया है.। दैत्यों के मल प्रतिनिधियों की मूर्तियाँ नष्ट हो चुकी हैं क्योंकि वे नीले स्लेटी पत्थर पर भद्देपन से बनी हुई थीं और उनमें उनके कोई भी पौराणिक चिह्न अंकित नहीं किए गए थे । परमार का दाहिना हाथ अभी भी कान तक खिंचा हुमा है जो उसकी लक्ष्यसिद्धि के प्रति दृढप्रतिज्ञता का द्योतक है; उसकी भुजा उन्मुक्त, लचकीली और सुगठित है; कलाई का मोड़ प्रशंसनीय है परन्तु अंगुलियां शायद बहुत ज्यादा मुड़ गई हैं; सभी अङ्ग सुगठित हैं तथा सम्पूर्ण प्राकार गौरवपूर्ण है। किसी धर्मान्ध ने धनुष के एक भाग को तोड़ दिया है, जो 'धनुष' या बाँस का बना हुआ नहीं है वरन् अधिक शास्त्रीय (Classic) विधि से भैंसे के सींग से निर्मित है। इसकी खिची हुई चूल अर्थात् प्रत्यञ्चा कार्य के प्रति विशेष तत्परता का सूचन कर रही है । मस्तक विशाल और सुगठित है जो केवल प्राकतिक आवरण से ढका हुआ है। शरीर पर एक घेरदार (घाघरे जैसा) अंगरखा है जो जाँघों के बीच तक लम्बा है और उसी तरह का है जैसा कि अरावली के निवासी आज तक पहनते आ रहे हैं। इस पर एक कमरबन्धा है जिसमें कटार खोंस रक्खी है । हाथों और पैरों के गहनों के साथ एक मोतियों की तिलड़ी इस प्रथम परमार (के प्रतीक) की प्रतिष्ठा का सूचन कर रही है। चरणचौकी के अधोभाग में एक लेख था परन्तु किसी धर्मान्ध ने इसके महत्वपूर्ण अंश, संवत् या साल को मिटा दिया है, यह इस प्रकार है- “सम्बत्...[मास] • Hindu Bucentaur. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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