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________________ ६०] पश्चिमी भारत की यात्रा तो उसे उसी पहाड़ से निकले हुए पत्थर से बने चूने से भरा पाया; मुझे इसमें सन्देह नहीं है कि वह पुजारी, यदि उसका मतलब बनता नजर आता तो, भगवान् के शङ्ख का भी चूना बनाने से न चूकता । यहाँ पर पातालेश्वर का ही सबसे अधिक सम्मान है, स्वर्ग के अन्य देवता इस अन्धकार की शक्ति के अधीन माने जाते हैं । इस तथ्य से पूजा-पद्धति की प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि सभी असभ्य जातियों में प्रेम के ऊपर भय का प्राधान्य रहता पाया है। मन्दिर से बाहर निकलते ही दरवाजे पर बने हुए कुछ भद्दे से उन खम्भों पर दृष्टि अटक जाती है जिन पर तिलक लगे हुए हैं और प्रत्येक पर गधे की मति खुदी हुई है। मन्दिर के चारों ओर बड़े-बड़े पेड़ खड़े हए हैं जिनमें प्राम के वृक्ष मुख्य हैं; इनके बीच-बीच में अंगूर की बेलें लिपटी हुई हैं जिन पर कलम के चाकू का प्रयोग कभी नहीं किया गया, परन्तु फिर भी मोटे-मोटे अंगूर लदे हुए थे जो अभी पके नहीं थे। लोगों ने मुझे बताया कि ये सब इस पहाड़ की प्राकृतिक उपज है । इनके अतिरिक्त चम्पा, चमेली, सेवती और मोगरा प्रादि के पौधे भी थे जो चारों ओर बहुतायत से उगे हुए थे। अचलेश्वर के मन्दिर में कोई शिलालेख नहीं था परन्तु मैंने उसके पास ही तालाब के एक शिलालेख की नकल कर ली थी। जिधर यह मन्दिर है उसी तरफ ठेठ अग्निकुण्ड के किनारे पर सिरोही के राव 'मान' की छतरी है, जो एक जैन मन्दिर में जहर का शिकार हुआ था'; वहीं संगमरमर के पत्थर पर उस जहर का एक निशान भी बताया जाता है जिससे उसकी मृत्यु हुई थी। उसके इष्ट देवता के मन्दिर के पास ही उसके शरीर की दाह-क्रिया हुई और पांच रानियाँ उसके साथ यमलोक (भारतीय प्लूटो के लोक) को गईं। स्मारक के मध्य भाग में स्थित एक वेदी पर उनकी मूर्तियाँ खुदी हुई हैं; यह स्मारक एक अकेली छतरी है जो खम्भों पर टिकी हुई है। रानियों को हाथ जोड़े हुए और नीची आँखें किए हुए दिखाया गया है मानो वे याचना कर रही है कि उनके स्वामी की पापों से मुक्ति के लिए उनकी आहति स्वीकार की जाये और उसे यमपाश से जुड़ा कर (हिन्दुओं के स्वर्ग) वैकुण्ठ में भेजा जावे जो एक दण्डनीय, निर्दय और सुरामत्त राजपूत की अन्तिम यात्रा के लिए सब १ महाराव मान को कल्ला परमार ने कटार वार करके मारा था। राव की माता में १६३४ वि० सं० में मानेश्वर का मंदिर बनवाया जिस में सती होने वाली पांच रानियों की मूर्तियां भी बनी हुई हैं। -सिरोही राज्य का इतिहास; गो० ही० पी०; पृ० २१५-१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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