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पश्चिमी भारत की यात्रा उदयपुर के पास बाड़ियों पर बने हुए मन्दिरों की बिलकुल अनुकृति है । इसकी सरल और ठोस बनावट, बाहरी चौकोर खम्भे, जिनका ऊपरी भाग ठेठ देहाती ढंग से बना हुआ है, बिलकुल उसी ढांचे में ढले हुए हैं और उन्हें देख कर यही कल्पना होती है कि यह उसी काल में और उसी कारीगर के द्वारा बनाया हुआ है। यहाँ पर एक ही शिलालेख है जिससे प्रकट होता है कि अणहिलवाड़ा के स्वामी भीमदेव सोलंकी ने इसका जीर्णोद्धार कराया था।
साढे दस घण्टों की मेहनत के बाद तीसरे पहर के तीन बजे हम राव मान की छतरी और अग्निकुण्ड के बीच में एक कुञ्ज में ठहरे। मैं एक जैन धर्मावलम्बी वणिक यात्री के सत्कार से बहुत अनुगृहीत हुआ जिसने मुझे यह कह कर एक छोलदारी का उपयोग करने के लिए विवश कर दिया कि 'मुझे तो खूली हवा ही अच्छी लगती है, यदि आप इसे काम में न लेंगे तो यह अनुपयुक्त ही पड़ी रहेगी।' 'जीवन की छोटी छोटी मीठी सद्भावनाओं ! तुम धन्य हो' । मेरे विविधतापूर्ण जीवन-क्रम के इन उज्ज्वल चिह्नों को जिस दिन मैं भूल जाऊँगा उस दिन अपने आप को भी खो बैठेगा। मैंने उसकी इस मनुहार का बहत स्वागत किया क्योंकि मैं रात की अोस से बहत डरता हूँ और मेरे शरीर के ढांचे को भूतों का सा बल देने वाले उत्साह के भरोसे ही मैं दिन भर की मेहनत को पार कर पाता है।
जब तक डेरे का सामान खुल रहा था तब तक मैं अग्निकुण्ड और हिन्दुनों के पौराणिक इतिहास में सुप्रसिद्ध अचलेश्वर की झाँकी लेने के लोभ को न रोक सका । 'मान-अग्निकुण्ड' लगभग नौ सौ फीट लम्बा और दो सौ चालीस फीट चौड़ा है और ठोस चट्टान में खोद कर बनाया गया है, अन्दर की तरफ़ बड़ी-बड़ी ईंटें जड़ कर पक्का इमारती काम किया गया है । कुण्ड के बीच में एक चट्टान का ढेर अलग ही छोड़ा हुआ है जिस पर जगज्जननी (The Universal Mother) माता के मन्दिर के खण्डहर वर्तमान हैं। कुण्ड के उत्तरी मुख के सिरे पर छोटे-छोटे मन्दिरों का एक समूह है जो पाण्डव बन्धुनों के नाम पर बने हुए हैं, परन्तु ये भी माता के मन्दिर के समान खण्डहर मात्र ही रह गये हैं । पश्चिम की भोर अचलेश्वर का मन्दिर है जो आबू के रक्षक देवता माने जाते हैं। परिमाण एवं आकार के लिहाज से इसमें कोई खास बात नहीं है और सजधज तो उससे भी कम है, परन्तु इसमें एक गम्भीर सादगी है जो इसकी प्राचीनता को सिद्ध करती है। यह एक चतुष्कोण के बीच में बना हुआ है और नीले स्लेट के पत्थरों से निर्मित छोटी-छोटी गुमटियों से घिरा हुआ है जो माकार-प्रकार में समान और आदिकालीन हैं। परन्तु, मुख्य तो वह पूजा
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