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________________ ८६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा हास-लेखकों की फ़ारसी के अधिकारी-लेखकों तक बहुत पहुँच रही होगी' जिसका कि हम आधुनिकों को पूरा-पूरा पता भी नहीं है । मैं इस युग के सब से नामी दानव की गुफा के पास हो कर निकला जो प्राबू और इसके आसपास के प्रदेशों में घणा एवं भय का कारण बना हुआ था। उसका नाम फतहपुरी था और बुड्ढा होने पर भी वह जो कोई सामने आता उसी की आँतें निकाल कर खा जाता था; इसके बाद उसने अपने आपको गुफा में ही समाधिस्थ कर लेने का विचित्र निश्चय प्रकट किया। सनकी लोगों के आदेशों का पालन प्रायः तुरन्त ही हो जाता है और क्योंकि उसे भी लोग ऐसा समझते थे इसलिए उसकी इच्छा की पूर्ति तुरन्त ही कर दी गई। उसकी गुफा का द्वार बन्द कर दिया गया और वह उस समय तक बन्द ही रहेगा जब तक कि मृत-शरीर की तलाश करने वाला कोई फिरंगी (Frank) उसे न खोले अथवा जब तक कि मस्तिष्क (खोपड़ी) का अध्ययन (Phrenology) हिन्दू शिक्षा का एक अंग न बन जाय । उस समय विनाश के चिह्न फत. हपूरी की खोपड़ी पर विकास की बहुत ऊँची अवस्था का सूचन करेंगे। मुझे बताया गया कि अब भी ऐसे बहुत से अभागे लोग पहाड़ की कन्दराओं में रहते हैं और कभी-कभी दिन में बाहर निकलते हैं, परन्तु वे फलों अथवा उन खाद्य वस्तुओं की तलाश में घूमते रहते हैं जिनको लेकर राहती लोग उनके लगे-बँधे रास्तों से निकलते हैं। मुझे एक देवड़ा सरदार ने बताया कि कुछ ही दिनों पहले जब वे उसके मत भाई के शव को जलाने के लिए ले जा रहे थे तो ऐसा ही एक दानव (अघोरी) अर्थी के सामने आया और यह कहते हुए मृत शरीर को माँगा कि 'इसकी बड़ी बढ़िया चटनी बनेगी।' उस [देवड़ा सरदार ने यह भी बताया कि इन लोगों पर मनुष्यों को मार देने का अपराध भी नहीं लगाया जाता। , इनमें चौथा यह जोड़ा जा सकता है कि नामों के प्रथ-साम्य हे प्राचीन एवं प्राधुनिक फारसी बोलियों को घनिष्ठता सिद्ध होती है। इस जाति का मुख्य निवासस्थान बरपुत्र (Burputra-बड़ोवा) में है जहां पर अब भी इस मत की संरक्षिका अघोरेश्वरी माता का मन्दिर प्राचीन स्थान पर बना हुमा है जो (माता) Lean Famine दुबली पतली स्त्री के रूप में नर का भक्षण करती हई बताई गई है। इस (माता) के भक्त विशाल सन्त-समाज के अन्तर्गत गिने जाते हैं जिनमें वे निस्सन्देह सब से अधम हैं; वे जो कुछ सामने पड़ जाय उसे खा लेते हैं, कच्चा हो या पक्का, मांस हो या शाकभाजी और जो कुछ हाय पड़े उसे ही पी जाते हैं, शराब हो या उनका खुद का पेशाब। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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