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प्रकरण • ५; तेज गर्मी की मात्रा के विभिन्न प्रभाव
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और उस समय तेज गर्मी के कारण सूखे पड़े कचलानाळ (Kuchala Nal) में स्लेटी पत्थरों के टुकड़े झरने के पेटे में जड़े हुए-से लगते थे । जहाँ-जहाँ पर हम ठहरते वहीं 'ज्ञान के चन्द्रमा' [ज्ञानचन्द्र ], यही मेरे गुरु का नाम था, और मुझ में इस मार्ग-विहीन चढ़ाई की चट्टानों में विराजे हुए गणेश के विषय में कई तरह की हास-परिहास की बातें होती रहीं। मेरे ध्यान से, इस देवता की स्थिति चढ़ाई के प्रारम्भ में ही अधिक ठीक रहती, जहाँ इस प्रयत्न के लिए प्रेरणा सुलभ होती; परन्तु, यहाँ पहुँचने के बाद चढ़ाई के कठिनतर भाग को पूरा कर लेने पर तो भक्त शायद पाशापूर्णा देवी की ही प्रार्थना करेगा कि उसे आगे की चढ़ाई आनन्दप्रद हो। यह कल्पना हिन्दुओं के उस पुराण-पन्थ पर आधारित है जिसमें प्रत्येक दैवी गुण के लिए एक-एक देवता की सृष्टि हुई है और उनके लिए पृथक्-पृथक् मन्दिर, सूक्त, पुजारी और भेंट का विधान है। इस प्रकार इन लोगों ने देश को एक विशाल देव-मन्दिर का रूप दे दिया है और उसी के साथ पूजारियों की एक जाति भी बन गई है जो भक्तों की थैलियां खाली कराते हुए उनके मानस में वश्यता उत्पन्न करते रहते हैं। गणेश की उत्पत्ति, भगवान् के द्वार-देवता के रूप में कर्तव्य और उनके नाम गण-ईश की व्युत्पत्ति (लघु देवों के ईश, पारसी पुराण के Jins अथवा Genii) आदि के विषय में मैं 'इतिहास' में विवेचन कर चूका हैं । बुद्धि के प्रतीक इस देवता के लिए हाथी का मस्तक चुना गया है, इस बात की व्याख्या करने की तो आवश्यकता नहीं है परन्तु इसके साथी [वाहन] के रूप में चहे को ग्रहण करने की बात समझ में नहीं पाती जब तक कि यह किसी विपरीतता का द्योतक न हो । ग्रीक लोगों ने सरस्वती (Minerva) को उल्लू का साथ दिया है जो सब प्रकार से बुद्धि को धारण किए रहता है; परन्तु चूहे की समझदारी राजनीतिज्ञ के अतिरिक्त और किसी को ज्ञात नहीं है। ___ अपने थके हुए अंगों को फिर से ताज़ा कर के हम आगे बढ़े और बीच-बीच में ठहरते हुए ठीक १० बजे पठार के सब से नीचे वाले स्थल पर पहुँचे। मेरे बॅरॉमीटर में आज सुबह से ही वृद्धि के लक्षण दिखाई पड़ रहे थे और विशेषतः उसमें, जिस पर मैंने अपना पूर्ण विश्वास जमा रक्खा था; गणेश-मन्दिर पर यह २७°६५' बतला रहा था अर्थात् मरु के मैदानों से केवल एक अंश अथवा ६०० फीट ऊँचे, परन्तु मुझे अपनी आँखों से यह दिखाई दे रहा था कि हम अरावली के पठार से भी ऊँचे पा चुके थे। पहाड़ की चोटी पर पहुँचने के बाद यह और भी स्पष्ट हो गया जब कि दो घण्टों की चढ़ाई के बाद भी पारा केवल ३०' ही का अन्तर बतला रहा था अर्थात् बॅरॉमीटर २७°३५' पर था।
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