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प्रकरण - ५, गणेश-मन्दिर
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भारतीय विषयों का प्रास्वादन कराने का श्रेय प्राप्त है। आइए, उसके कथन की जाँच करने के लिए हम भी आगे चलें।
सूबह चार बजे से ही मेरे डेरे में चहल-पहल शुरू हो गई। आध घण्टे में तैयार हो कर में घोड़े पर सवार हो गया; मेरे गुरु और बॅरामीटर अगल-बगल में थे तथा हमारा पहाड़ी संघ पीछे-पीछे चल रहा था जिसके पास स्वर्गीय [इन्द्र ] वाहन और पार्थिव सफ़री टोकरे थे, जिनमें ऐसे खाद्य पदार्थ थे कि जो किसी ब्राह्मण अथवा जैन को बुरे न लगें। मेरे सिपाहियों में कुछ हिन्दू, ब्राह्मण और राजपूत भी थे, जो कुछ मेरी सुरक्षा के लिए और मुख्यतः इसलिए साथ आए थे कि वे 'बुद्धि' (Wisdom) की पूजा उसके पवित्र मन्दिर में ही कर सकें। हम पूरे एक घण्टे तक उस जंगल की भूल-भुलैया में चक्कर काटते रहे जो इस पहाड़ को चारों ओर से घेरे हुए है। अंत में, जहाँ से चढ़ाई शुरू होती है उस स्थान पर आकर मैंने बॅरॉमीटर तिपाई पर लटकाए और देखा कि वह २८०.५५' बतला रहे थे अर्थात् सपाट स्थान पर के अल्पतम ऊँचाव से दस सैकिण्ड कम थे। सुबह के ठीक छ: बजे हमने चढ़ाई की ओर पहला कदम उठाया और सात बज कर बीस मिनट पर चढ़ाई के देवता गणेश के मन्दिर पर पहुँच गए जो गणेशघाट कहलाता है; ठहरने के इस स्थान तक पहुँचने में हम लोगों को बहुत मेहनत पड़ी। यहाँ पर कुछ दम लेने व अपने प्रयत्न के बारे में आगे सोचविचार करने के लिए हम पाव घण्टा ठहरे। राहतियों (आबू के जंगली-निवासियों का यही नाम है। और मेरे सिपाहियों ने मन्दिर के पास ही छोटे-से गणेश-कुण्ड या बुद्धि के झरने के पानी से अपने कण्ठ गीले किए, यद्यपि इसका पानी एस्फाल्टाइटीज़' (Asphaltites) के पानी की तरह गंधक मिश्रित और
यही उसकी सर्वोत्तम रचना मानी जाती है। १८२३ ई० में वह कलकत्ता का बिशप होकर भारत आया। अपनी सहज जिज्ञासु-वृत्ति और धार्मिक भावना से प्रेरित होकर उसने भारत के विभिन्न भागों की यात्रा की, गिर्जाघरों में सुधार किये और स्कूल खोले । अत्यधिक परिश्रम के कारण उसका स्वास्थ्य गिर गया और अन्त में १८२६ ई० के जनवरी मास में त्रिचनापल्ली में उसका देहान्त हो गया । 'Narrative of a Journey through...India' नामक पुस्तक का सम्पादन उसकी विधवा पत्नी एमीला ने किया जो John Murray द्वारा १८२८ ई० में प्रकाशित की गई।
-E. B., Vol. XI, p. 594. १ स्विट्ज़रलैण्ड का एक झरना जिसका पानी खारी, गंधक-मिश्रित और चूना मिला हुमा
सा होता है। Asphalt [बालू-बजरी] मिली होने के कारण ही इसे Asphaltites कहते हैं।
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