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प्रकरण - ५; मेरिया
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तीसरा एक चारण को मिला हुआ है । आबू का विशाल भाग अब द० ७०० पू०
से द० १५° प० को था ।
८ बजे प्रातः
बॅरॉमीटर २८७१'
थर्मामीटर ८६°
दोपहर
२८ ७१'
୧୪°
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१३ बजे शाम
२८ ६५'
६८
जून ११ वीं - पालड़ी - सात मील छः फर्लाङ्ग; पहले चार ( मील) ५० ५५° प० दिशा में जा कर हम सुबेरा ( Sunwaira) ग्राम में पहुँचे जहाँ से आबू का सब से ऊँचा भाग द० ८५० पू० से द० में है और उसकी सब से ऊँची चोटी गुरुशिखर द०पू० में है । दो मील और चल कर नीचे वाली श्रेणी के तले सीसेरिया ( Seeroria ) गाँव पहुँचे जहाँ पर हमने दूसरा भरना पार किया । वहाँ से ठीक दक्षिण में दो मील चल कर हम अपने ठहरने के स्थान पालड़ी पहुँचे, जिसके उत्तर में उसी नाम की एक छोटी सी नदी बहती है जो पहले वाली नदी के समान ही प्राबू की दरारों से निकलती है, जिसकी सीमाएं उ० ७०० पू० और द० ५° के बीच में हैं । गुरुशिखर यहाँ से द० ७०° पू० में दो कोस या पाँच मील की दूरी पर होगा । प्रातः ८ बजे, दोपहर में एक बजे व तीन बजे और शाम को ६ बजे बॅरॉमीटर क्रमश: २८°७५, २८°७०, २८°६५ र २८०६५' पर था और थर्मामीटर ८६, ९६९, ६८° और ६२° पर । मेरा दूसरा बॅरॉमीटर, जिस पर मेरा विश्वास कम था, शाम को ६ बजे २८०४३' बतला रहा था और इस प्रकार उससे २२' का अन्तर व्यक्त होता था; परन्तु बाद के निरीक्षण से ज्ञात हुआ कि मैंने जिस बॅरॉमीटर पर विश्वास कर रखा था वही बिल्कुल विश्व - सनीय था ।
६ बजे शाम
२८° ६२'
९४०
अन्त में, हम विशाल आबू के किनारे आ ही पहुँचे और उसी के अंचल में जा कर डेरा डाला । ऐसी स्थिति में चौबीस घण्टे तक ठहरे रहना और उन चट्टानों के विषय में सोच-विचार करते रहना, जिन पर हमें चढ़ना था, सचमुच हमारे धैर्य का परीक्षा - काल था । सारा दिन हिन्दू - ऑलिम्पस [ देव- पर्वत ] पर चढ़ाई की तैयारियों में बीता । वास्तव में यह एक ऐसा प्रयास था जिसमें बुद्धि ( Boodh) की सहायता प्राप्त किए बिना कदम नहीं बढ़ाया जा सकता था । राव ने चालीस मजबूत पहाड़ी सेवक मुझे और मेरे साथियों को चोटी तक उठा ले जाने के लिए भेज दिए थे। उनके पास दो सवारियाँ थीं, जो 'इन्द्रवाहन' कहलाती थीं। इसमें दो लम्बे बाँस थे और इनके बीच में एक फुट लम्बी व चौड़ी बैठक लगी हुई थी और इसी वाहन की सहायता से कोई निरुद्योगी
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