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पश्चिमी भारत की यात्रा
एक का भी दुष्टतापूर्ण भंग करने पर, कई बार उलट दी जाती है । देवड़ों के वर्तमान शासक राव के बड़े भाई को सरदारों और प्रमुख नागरिकों की एक सभा द्वारा बाकायदा गद्दी से उतार दिया गया, क्योंकि वह उन पर बहुत ही कुत्सित अत्याचार करने लगा था, जो उनकी स्त्रियों की पवित्रता को लाञ्छित करने की सीमा तक भी पहुंच चुका था। यही नहीं, जैसा कि ऊपर वर्णन किया जा चुका है, जब उसे उड़ा कर जोधपुर ले जाया गया तब देवड़ों की स्वतन्त्रता के अपहरण पर हस्ताक्षर कर देने का अपराध भी उसको कभी क्षमा नहीं किया गया। राज्य के लिए अयोग्य घोषित होने पर उसे हमेशा के लिए कैद कर दिया गया और वर्तमान शासक श्योसिंह को उसकी एवज़ गद्दी पर बैठा दिया गया। इस युवक की नैतिकता एवं दया-भावना का इससे बढ़ कर और क्या उदाहरण हो सकता है कि वह अपने बन्दी भाई पर पूर्ण अनुग्रह रखता है और प्रतिक्रिया को रोकने के लिए एशिया में प्रचलित उस तरीके को बरतने की कायरतापूर्ण सलाह से घृणा करता है, जिसमें राज्यच्युति का परिणाम मृत्यु होता है।
सिरोही की लागानी आय शान्ति की दशा में, तीन से चार लाख रुपया वार्षिक तक पहुंच जाती है और करीब करीब इससे आधी आमदनी जागीरदारों से सेना-कर की हो जाती है। इनमें पाँच बड़े जागीरदार ये हैं, नीमाज, जावाला पारिया, कालिन्द्री और बोप्राड़िया; ये सभी राजधानी से १४ से २० मील की दूरी के अन्दर अन्दर हैं। उत्पत्ति के लिहाज से सिरोही आबू के संगमर्मर व तलवारों पर गर्व कर सकती है, जो राजपूतों में उसी तरह प्रसिद्ध हैं जैसे फारसियों (Persians) और तुर्कों में दमिश्क (Damascus) की तलवारें। सुन्दर काठियावाड़ी घोड़े पर सवार, हाथ में भाला और बग़ल में सिरोही (तलवार) -बस यही निर्भीक देवड़ा की छवि है।
मेरा विचार था कि यहाँ देवड़ों की वंशावली प्रारम्भ से दूं, परंतु यह सोचकर कि मैं इस जटिल विषय को सुलझाने में कितना भी परिश्रम करू, इससे अंग्रेज पाठकों की रुचि में कोई जागृति नहीं आएगी, इसे छोडे दे रहा हूँ। फिर, हारूं'
हारू-अल-रशीद बगदाद का प्रसिद्ध पांचवां खलीफा (७८६-८०६ ई.) था। यह मोहम्मद साहब की अब्बासी शाखा से सम्बद्ध था। अब्बासियों ने ७५० ई. के लगभग पूर्व-शाखा के उम्मियादों को अपदस्थ कर के अधिकार ग्रहण किया और तभी अरब की राजधानी दमिश्क से ईराक में बगदाद को स्थानान्तरित हो गई । अब्बासी साम्राज्य हारू के समय में उन्नति के शिखर पर था। उसके दरबार में चीन और रोम के बादशाह शॉर्ल मॅन के दरबार में से राजदूत पाया करते थे। वह वेश बदल कर अपनी
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