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________________ ७० पश्चिमी भारत की यात्रा उसे लूट लेने की सभी लुटेरेपन की आदतें अपने मातहत मीणों से अपना ली थीं। इन लोगों को जो उकसाहट मिलती थी उसके बारे में इन यात्रियों को कोई पता नहीं था इसलिए वे अपने वृत्तान्तों में कोई अन्तर या कमी नहीं कर सकते थे। उन्हें यह मालूम नहीं था कि उनके किए का फल विदेशियों को भुगतना पड़ता था और इसीलिए उनमें और भुगल प्रतिनिधियों के छोटे नौकरों में झगड़ा होता रहता था, जिनका उद्देश्य जहाँ भी और जैसे भी मिले पैसा प्राप्त करने भर का था। इन कारणों से तथा बादशाहों की नौकरी करके बड़े बने हुए मारवाड़ के राजाओं द्वारा किए गए लगातार हमलों से यह रियासत अर्द्धसभ्य किन्तु उच्च-स्वाधीनता की अवस्था में पनप सको। इसके स्थानीय महत्त्व की वृद्धि का एक कारण यह भी था कि यहां के राजा पवित्र अाबू के संरक्षक थे जहां के मन्दिरों में भारतवर्ष के सभी भागों से जैन-धर्मावलम्बो श्रद्धालु यात्री पाया करते थे। आश्चर्य की बात है कि विदेशी यात्रियों में से किसी के द्वारा भी इन मन्दिरों तक पहुंचने के लिये किया गया प्रयत्न ज्ञात नहीं होता, यद्यपि यह बात नहीं हो सकती कि उनकी प्रसिद्धि के विषय में उनको कुछ भी मालूम न हुआ हो । दूसरे दिन ठहर कर मैंने राव से भेंट और नज़रों का आदान-प्रदान किया । इस अवसर पर उन्होंने अपने सभी सरदारों को एकत्रित कर लिया था। अपने राजा के सम्मान में पहले कभी देवड़ों का ऐसा शानदार , समारोह होना किसी को याद नहीं था। माणिकराय के वंशज के तोशाखाने में अधिक सामग्री नहीं थी इसलिए मैंने प्रसन्नतापूर्वक अपनी सरकार की ओर से प्रदान करने योग्य भेंट उनको नज़र की । ऐसा करने में अधिक खर्चा भी नहीं हुआ क्योंकि जवाहरात और पोशाक का सामान तो मुझे मेवाड़ के राणाजी के यहाँ से विदा की भेंट में मिले ही थे, इसके अतिरिक्त बहुमूल्य साखत से सजा हुआ एक हाथी, एक घोड़ा, जवाहिरात से जड़ी हुई धुगधुगीदार मोतियों की माला, एक मूल्यवान सिरपेच और उचित संख्या में ढालें (राजपूतों के थाल) जिनमें दुसाले, पारचे, मलमलें, पगड़ियां, साफ़ और कुछ यूरोप के बने हुए कपड़े, जो उनके लिए अप्राप्य थे, भेंट किए गये। दोपहर में मैं उनसे वापसी मुलाकात करने गया तब वे मेरे डेरे के आधे रास्ते तक अपने दरबार के साथ मुझे लेने आए और महलों तक अपने साथ ले गए। वहाँ पर, शान्ति और व्यवस्था की आवश्यकता, उनको शत्रुओं की दाढ़ से मुक्त कराने और संरक्षण प्रदान करने के बदले में मेरी सरकार की ओर से मुख्य मांग आदि के विषय में लम्बी बातचीत के बाद, नज़रें पेश की गईं । मैंने उनको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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