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पश्चिमी भारत की यात्रा
कर ईमानदारी और सचाई को सुन्दरता को पहचानते हैं। उनके मुंह से यहाँ के लोगों के प्रति बरते हुए दयाभाव और सरलता की प्रशंसा सुनसुन कर कोई भी सहज में ही यह अनुमान कर लेगा कि हमारे द्वारा संरक्षित ये प्रदेश सामाजिक विकास को चरम सीमा पर पहुंच चुके हैं । जब रोम ने, जिसे राष्ट्रों की जननी कहते हैं, यूरोप के सुदूर प्रदेशों को जीत कर बस्तियाँ बसाईं तब वहां पर अपनी कला का प्रसार किया, विजित लोगों को अपनी सरकार का अंग बनाया और वैभवशाली एवं उपयोगी कार्यों के रूप में ऐसे-ऐसे स्मारक छोड़े कि उनमें से बहुत से तो आज भी उसकी शक्ति व शासन का प्रमाण देने के लिए वर्तमान हैं । परन्तु, क्या ब्रिटेन ने ऐसा किया है ? अपने भारतीय प्रजाजनों की गाढी कमाई से लाखों स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त करके उसका कौन सा भाग उनकी भलाई के लिए खर्च किया जाता है ? जैसे पुल, सार्वजनिक सड़कें व मनोरंजन के स्थान ट्राजन (Trajan)' या हानिन (Hadrian)" द्वारा बनवाए गए थे वैसे यहाँ पर कहाँ हैं ? छायादार आम रास्ते, काफ़िलों के लिए ठहरने की सरायें, कूए और तालाब कहाँ हैं, जैसे कि हमारे पूर्ववर्ती असहिष्णु और अत्याचारी मुसलमानों ने हमसे पहले हिन्दुस्तान पर अपने शासनकाल में बनवाए थे ? लन्दन में भारतीय खजाने (India Stock) के मालिक इन प्रश्नों का उत्तर दें।
हमारे तलवार के शासन की असलियत का एक और स्पष्ट उदाहरण दे कर मैं अपने इन विचारों को यहीं पर समाप्त करता हूं । यद्यपि हम अपने शासन की दूसरी शताब्दी में बहुत आगे बढ़ चुके हैं परन्तु अभी तक कोई भी ऐसा
१ Trajan ट्राजन रोम का बादशाह (६८-११७ ई०) था। इसके समय में रोम साम्राज्य का
सर्वाधिक विस्तार हुआ । डेसिया, मेसोपोटेमिया, प्रारमेनिया और असीरिया इसी के समय में रोम साम्राज्य के अंग बना लिए गए थे। सर्वाङ्गीण सुशासन के सभी अङ्गों का इसके राज्यकाल में विकास हुआ। नए पुलों, सड़कों, नहरों, और इमारतों का निर्माण हुमा । इसने बहुत से पुस्तकालय भी स्थापित किए थे।
-N. S. E., p. 1230. २ Hadrian हाड्रियन ट्राजन का उत्तराधिकारी था। ११७ ई० से १३८ ई. तक सुशासक
के रूप में इसने राज्य किया। कृषि-कर बन्द करने एवं अन्यान्य अनेक कल्याणकारी सुधार करने का श्रेय भी इसको प्राप्त है । ब्रिटेन की यात्रा करके इसने सुप्रसिद्ध हाड्रियन वॉल (दीवार) बनाई जो टाइन नदी पर सॉलवे फर्थ (Solway Firth) से इंगलैण्ड के आर पार वॉल्स-एण्ड (wall's end) तक फैली हुई है । १३८ ई० में एक आत्म-विषयक काव्य लिखने के उपरान्त उसकी मृत्यु हो गई।
-N. S. E., p. 596.
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