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________________ प्रकरण ४; बृटिश-नीति [ ६५ व्यवहार बहुत कम किया जाता है और न्याय का डंडा उठ कर जहां भी गिर पड़ता है वहां अवश्य ही वह किसी न किसी को मार गिराता है । हमारे पूर्वदेशीय कानून निर्माता यह भूल जाते हैं कि मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियां उसके राजनैतिक एवं सामाजिक कर्त्तव्यों पर अपना अधिकार जमा लेती हैं और पूर्ण प्रज्ञाकारिता के पथ से विचलित होने के अपराध के लिए भारी से भारी दण्ड को भी कड़ा एवं गम्भीर नहीं समझते । सम्भवतः यह भावना हमारे शासन का, जिसको तलवार का शासन कहा जाता है, एक अविभाज्य अङ्ग बन गई है और तन्त्र के प्रत्येक अंग में गवर्नर-जनरल से ले कर छोटे से छोटे मध्यस्थ तक में कुछ न कुछ मात्रा में अवश्य पाई जाती है; यद्यपि स्वदेश ( इंग्लैण्ड) की नियन्त्रण करने वाली शक्ति इतनी मात्रा में अनिष्टकारिणी नहीं है परन्तु वह नए-नए मनुष्यों के साथ नए-नए व्यवहारों का प्रयोग करती है । कार्यकारिणी के कार्यों का प्रयोग इतना अनिश्चित और अस्थायी होता है कि उनमें से प्रत्येक अथवा किसी भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के क्रमिक व्यापारों को समझना व उनका ध्यान रखना असंभव होता है। हर एक सदस्य अपने परिमित कार्यक्षेत्र में और तंत्र के उस भाग के संचालन में, जो उसके भरोसे छोडा गया है, अधिक से अधिक प्रशंसा प्राप्त करने के लिए बेचैन रहता है और जो कोई भी आन्तरिक शक्ति उसके समान रूप से चलने में बाधा उपस्थित करती है उसका तुरन्त उन्मूलन कर दिया जाना श्रावश्यक समझता है । सम्भवतः बुद्धिमत्तापूर्ण उद्देश्यों को ध्यान में रख कर ही ( नीति का ) ऐसा निर्देशन किया गया है, और विजेताओं की योजना में क्रमबद्धता की कमी तथा इसके साथ ही वह सभ्यता, जिसका हम लोग विजितों में धीरे-धीरे प्रसार कर रहे हैं, अंत में उनको मानसिक एवं राजनैतिक दासत्व से मुक्त कराने की ओर ले जायगी। कुछ लोगों ने तो इसी को अपने प्रयत्नों का चरम लक्ष्य स्वीकार किया है, परन्तु जहां ऐसा जनहित का विशाल दृष्टिकोण अपनाया जाता है वहां साधनों का लेखा बहुत ही अयोग्यता के साथ लगाया जाता है । जब हमारे प्रजाजनों पर कर कष्टदायक हैं और चुङ्गियां भारी एवं उनको गरीब बना देने वाली हैं तो हम यह कहने का साहस नहीं कर सकते कि हमारा 'आ' भारी नहीं है । कोई कुछ भी क्यों न कहे, हमारी सरकार द्वारा राजकर एवं अर्थसम्बन्धी जो भी कानून बनाए जाते हैं वे इनकी दशा सुधारने के दृष्टिकोण से नहीं वरन् हमारे खजाने भरने के लिए बनाए जाते हैं । ऐसे लोग बड़े विलक्षण हैं जो समाज के सदस्य होते हुए अपनी व्यक्तिगत स्थिति में शासन से भारत को हो रहे लाभों पर विचार-विमर्श करते समय इन सब बातों को परे रख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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