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पश्चिमी भारत की यात्रा सके, वे लोग जो अन्य सभी बातों में देवदूतों के समान थे. कभी कभी बहुत लम्बी अवधि के बाद रकम वसूल कर लेते थे परन्तु हमेशा ही टंटे-झगड़े के साथ (au bout du fusil) | ब्रिटिश सरकार को जो इसके अन्तिम फैसले में साझी होने का विरोध कर रही थी कि आगे चल कर इसकी स्ततन्त्रता कहीं फिर न उलझ जाय, कुछ हजार रुपये वार्षिक दे कर सिरोही मारवाड़ के पंजे से हमेशा के लिये निकल गई और अब वह (सब मामलों में) केवल ब्रिटिश सरकार के ही अधीन है।
अपनी सामर्थ्य के अनुसार यूवक राव ने भी अपने कर्तव्य का पालन करने में पूरी-पूरी चेष्टा की है। मीणा जाति को रोक दिया गया है; मजबूत चौकियां कायम कर दी गई हैं और व्यापारियों, कारीगरों व किसानों को लूट के विरुद्ध सुरक्षा एवं प्रोत्साहन देने के अभयपत्र (Passport) दिए जाते हैं। शहर, जो पहले बिलकुल उजाड़ हो गया था, अब फिर बसने लग गया है; जो व्यापारी, तीन या चार साल पहले यह समझते थे कि सिरोही में घुसना चोरों की माँद में घुसना है और यह बात अक्षरश: सत्य भी थी, वे अब फिर दुकानें खोलने लगे हैं और यहां के निवासियों व दर्शकों को यह देख कर आश्चर्य होता है कि जो मीणें गली-कूचों में ही अपना मुँह दिखा सकते थे और जो चीते व भालू की तरह घास व झाड़ी से ढंके रास्तों में ही छुप-छुपे चलने के अभ्यस्त थे वे ही अब बाजार में व्यापार की चीजों के व धन के ढेर के ढेर देख कर भी किसी अशक्य एवं अतयं कारणवश उन्हें झपट लेने से रुके रहते हैं । मैं, ऐसा ही एक विस्तृत चित्र 'इतिहास' में भीलवाड़ा के वृत्तान्त में दे चुका हूँ; परन्तु पहाड़ी मीणों और उनके स्वामी देवड़ा राजपूतों के, जिनकी संयुक्त प्रवृत्तियां युगों से पहाड़ी व जंगली चीतों के समान रही हैं, घरों में शांतिस्थापन का यह वैसा ही छोटा-सा चित्र उन लोगों का मनोरंजन किये बिना न रहेगा जो मानवीय प्रवृत्तियों के इतिहास व व्यापार की ऐसी विचित्र घटनाओं पर विचार करने में रस लेते हैं। मैं यहाँ पर अपना यह मत प्रकट कर देना चाहता हूँ कि जो जातियां सर्वशक्तिमान् परमात्मा द्वारा हमारे संरक्षण में रख दी गई हैं उनके सुधार कार्य में हमको बहुत ही सहनशीलता से काम लेना चाहिए; यदि कभी कोई हुल्लड़ (विद्रोह) हो भी जाय तो यह न भूलना चाहिए कि हम इतने शक्तिशाली हैं कि हमें निर्दयता का व्यवहार करने की आवश्यकता नहीं है और हमारे द्वारा दिए हुए दण्ड भी, सुधार के उद्देश्य को दृष्टि में रख कर ही दिये जाने चाहिएं। दुःख का विषय है कि ब्रिटेन के संरक्षण में जो विभिन्न जातियां आ गई हैं उनको सजा देते समय दया का
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