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________________ प्रकरण - ४, भारत के प्रादिवासी [६३ कुछ दम था अर्थात् सिरोही में तो इतनी शक्ति नहीं थी कि वह लुटेरों को वश में रख सके या दण्ड दे सके और उनके हमलों से जोधपुर वालों को नुकसान उठाना पड़ता था इसलिए यह अधिकार व शक्ति जोधपुर को प्राप्त होनी चाहिये। उन्होंने अपनी मांग की पुष्टि में एक ताजा मामले का उदाहरण भी दिया जिसमें ऊटवण और माचल की टुकड़ियों ने मारवाड़ की सीमा में धावे किए और जान व माल का बहुत नुकसान हुआ । इस मामले को बहुत अच्छी तरह से प्रमाणित किया गया और इससे 'व्यवस्था के रक्षकों पर' कुछ प्रभाव भी पड़ा, परन्तु जब 'दूसरे पक्ष की भी बात सुनो' (audi alteram partem) इस तथ्य भरे सूत्र का प्रयोग किया गया तो मालूम हुआ कि इस हमले में जोधपुर के मीणे न केवल शामिल ही थे वरन उत्तेजना भी मारवाड़ ही की तरफ से शुरू हुई थी, फिर सिरोही के वकील ने ठीक अवसर पर यह सवाल किया 'यदि हमारे मीणों के हमलों से, जिनको हम एकदम नहीं रोक सकते, यह कारण उत्पन्न होता है कि जोधपुर को सेना हमारी सरहद में प्रवेश करे और वहाँ पर अपनी चौकियाँ कायम करे (जैसा कि वास्तव में किया भी गया है) तो उनकी रियासत की पहाड़ी जातियों द्वारा पड़ोसियों को जो भारी नुकसान पहुँचाया जाता है उसके बारे में मारवाड़ के राजा के पास ब्रिटिश सरकार को देने के लिए क्या उत्तर है ?' ये सभी प्रमाण यद्यपि बहुत ही चतुराई और बारीकी से प्रस्तुत किए गए थे परन्तु जब सचाई के सामने रक्खे गए तो ठहर न सके और अन्त में मैंने सिरोही की स्वाधीनता को मारवाड़ के भाग्य की पहुंच के बाहर रख दिया जिसके बदले में मुझे जोधपुर के राजा व उसके खुशामदी मुसाहबों और वकीलों की घृणा प्राप्त हुई तथा देवड़ों से शंका भरा आभार, क्योंकि उनकी भूमि में अभी भी विभाजन और असन्तोष के दश्य वर्तमान थे। मारकुइस हेस्टिग्स की इच्छा थी कि सभी आपस के झगड़े शान्त कर दिए जावें इसलिए देवड़ों पर आधिपत्य स्थापित करने के प्रयत्नों में असफल हुए राजा मान के पाहत अभिमान को सान्त्वना देने के लिए उनका झुकाव हुआ था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने बातचीत के प्रारम्भिक समय में यह सुझाव दिया कि राजा से पिछले दस वर्षों की वसूली का नकशा मांगा जाय और उस की औसत रकम अब से उसको ब्रिटिश सरकार के द्वारा मिलती रहे। उनके अधिकारों की मांग को न्याय की कसौटी में रखने के लिए जब मैंने यह सुझाव अपनी सरकार के सामने रखा था तो मेरा विचार था कि इससे न तो सिरोही पर आर्थिक बोझा बढ़ेगा और न उसकी स्वन्त्रता में कोई बाधा पड़ेगी। इससे पूरा मतलब भी हल हो जाता था। राजा मान क्रमबद्ध वसूली के प्रमाण न दे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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