SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा अधीनता में नौकरी दी है परंतु वह मारवाड़ के राजा के पद से नहीं वरन् साम्राज्य के प्रतिनिधि के पद से संबंधित है। और गुजरात के युद्धों में, जहाँ देवड़ों की तलवार लोहा लेने में किसी से पीछे नहीं थी, वे अभयसिंह के सेनापतित्व में लड़े थे । ये थे वे राजनैतिक प्रमाण जिसके लिए वे तैयार नहीं थे, फिर इसके उप-प्रमाण में वे कहते थे कि सिरोही के प्रमुख सरदार नीमाज के ठाकुर ने उनकी वास्तव में नौकरी की थी। यह दलील इस उत्तर से कट जाती थी कि सभी रियासतों में कुछ देश-द्रोही और अवसरवादी लोग होते हैं और यह बात जोधपुर के राजा को भी अच्छी तरह मालूम थी कि अपने सामंतों की रक्षा करने तथा उनको दण्ड देने के लिए सिरोही की शक्ति बिलकुल क्षीण हो चुकी थी इसलिए यह रियासत भी इस नियम का अपवाद न रह सकी। फिर, नीमाज मारवाड़ की सीमा पर होने के कारण उसकी स्थिति शत्रुओं की कृपा पर ही अधिक निर्भर थी; और सब से बढ़ कर बात तो यह थी कि यहाँ का ठाकुर, जिसका पद पहले ही अपनी स्थिति में बहुत ऊँचा था, एक और कदम बढ़ाने पर सब से ऊँचा हो सकता था। अपनी इस अभिलाषा की पूर्ति के लिए वह सदैव जोधपुर की सहायता की अपेक्षा करता रहता था। जब उन्होंने देखा कि कर वसूल करने के अधिकार उनके लेखों से सिद्ध नहीं हो सकेंगे तो उन्होंने आर्थिक पहलू से कोशिश की और जब कभी समय और अवसर मिला तभी हमले और लूट-खसोट कर के वसूल किए हुए करों की एक अनियमित तालिका पेश की। परन्तु न तो लगातार नियत रूप से प्रतिज्ञाबद्ध अदायगी के लेख और न प्रान्तीय हाकिमों द्वारा स्वार्थवश किए हुए नियम-विरुद्ध हमलों को प्रामाणिक सिद्ध करने के लिए कोई लिखित पत्रादि सामने आए कि जिनसे यह प्रश्न हल होता। अलबत्तः यह सच है कि, उन्होंने एक लेख प्रस्तुत किया जिस पर वर्तमान राव के बड़े भाई के हस्ताक्षर थे और जिसमें उसने किन्हीं शर्तों पर जोधपुर की अधीनता स्वीकार कर ली थी; परन्तु वे होशियारी से उस परिस्थिति को छुपा गए कि जिसमें पड़ कर राव ने यह लिखावट लिखी थी अर्थात् उस समय वह अपने भावी स्वामी की शक्ति के आधीन हिरासत में था और अपने पिता की भस्म गङ्गाजी ले जाते समय बीच ही में पकड़ लिया गया था। इसीलिए देवड़ा सरदारों का इस अनौचित्यपूर्ण ढंग से लिखाए हुए लेख को एक रद्दी कागज के समान समझना बहुत ही बुद्धिमत्तापूर्ण एवं न्यायपूर्ण था; और न उन्होंने इस सम्बन्ध में स्वेच्छा से जोधपुर के खजाने में कभी एक रुपया भी जमा कराया था। जब और सब दलीलें असफल हुई तो वे एक और तर्क सामने लाए जिसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy