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________________ ६० ] पश्चिमी भारत की यात्रा में होकर था जिसमें मुख्यतः उपयोगी और मजबूत धो[क] और सदा हरे पीलू के वृक्ष थे। सातवें मील पर हम ऊटवण की पहाड़ी-श्रेणी को पार करके उस घाटी में पहुँचे जिसमें देवड़ों की राजधानी स्थित है। एक मील आगे चलकर हमें एक पहाड़ी किले के खण्डहर मिले जिसे उदयपुर के राणा कुम्भा ने कुम्भलमेर से मालवा के गोरोवंशीय (Ghorian) सुलतान द्वारा निकाले जाने पर बनवाया था। इसी स्थान पर हम सारणेश्वर (Sarneswar) के मन्दिर पहुँचे जो सिरोही के राजाओं व सरदारों की बहुत सी छतरियों से घिरा हुआ है। यहां के आकर्षण का मुख्य विषय एक कुंड है जिसका पानी चर्मरोगों को दूर कर देता है; भारतवर्ष के अन्य गरम पानी के सोतों की तरह यह भी 'शिव' के नाम पर ही प्रसिद्ध है । मन्दिर की गोल और मेहराबदार छत खम्भों पर टिकी हुई है और गुम्बद की आकृति इस प्रदेश के रिवाज के अनुसार अण्डाकार है जिसका छोटा भाग एक लम्बे आधार पर सीधा रखा हुआ है। अन्दर शिवलिङ्ग विराजमान है और बाहर एक भारी त्रिशूल है जो पूरा बारह फीट ऊंचा है और सप्तधातु का बना हुआ बताया जाता है । पत्थर में उत्कीर्ण दो हाथी दरवाजे पर रक्षा के लिए खड़े हैं और पूरा मन्दिर एक पक्के परकोटे से घिरा हुआ है जो माँडू के मुसलिम सुलतान ने खिंचवाया था । कहते हैं कि इस कुण्ड में स्नान करके वह उस रोग से, जिसे कोस [कोढ ?] कहते हैं, मुक्त हो गया था। चमत्कार हुआ हो या हुआ हो परन्तु, पैग़म्बर की शरीअत के विरुद्ध मन्दिर की मरम्मत करवाना अथवा भेंट चढ़ाना इस बात का पुष्ट प्रमाण है कि (इस कुण्ड का) पानी लाभदायक है । नन्दिकेश्वर की वर्तमान मूर्ति असली नहीं है। वह तो शिलालेख के साथ मेवाड़ ले जा कर नए मन्दिर में स्थापित कर दी गयी है । देवड़ों के समाधिस्थल भी स्थापत्य एवं विस्तार की दृष्टि से विशिष्ट हैं और खास बात यह है कि प्रत्येक के साथ एक अलग शिलालेख लगा हुआ है। वर्तमान महाराव के पिता की छतरी में एक छोटा सा मन्दिर है जिसके पास ही मृतक की घुडसवार मूर्ति है; परन्तु राव गज की छतरी बहुत विशिष्ट है जिसमें अन्तर्वेदी पर चार सतियों के अतिरिक्त उसके राजपूत सामन्तों की भी एक पंक्ति मध्यम आकार (basso-relievo) में बनी हुई है--सभी ढालें और तलवारें लिए हुए हैं। चौहाण जाति का इण्डो-गेटिक (Indo-Getic) वंशक्रम में होने का यह एक और प्रमाण है-ये लोग बाद में ब्राह्मण धर्म में परिवर्तित हो गए थे। देवड़ों की राजधानी सिरोही में मेरे आगमन का अभिनन्दन खुशी के गीतों हारा हुआ जिनको श्रेष्ठ सुन्दरियां, जैसी मैंने भारत में और कहीं नहीं देखीं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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