SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा . तरफ वेदी बनी हुई थी। लेख उन्हीं गूढ अक्षरों में था जिनका कुछ विवरण' में पहले दे चुका है। दूसरे सिक्के भी इसी तरह अपने ही ढंग के थे जिनमें सीधी तरफ गूढाक्षरों से ( यदि हम इस शब्द का प्रयोग कर सकें ) युक्त घोड़े पर सवार, हाथ में भाला लिए हुए किसी योद्धा की अथवा घुटने टेक कर बैठे हुए नन्दोश्वर की मूर्ति बनी हुई थी और दूसरी ओर संस्कृत अक्षरों में किसी राजपूत राजा का नाम ठपा हुआ था, परन्तु उसमें तिथि, जाति अथवा देश का कोई उल्लेख नहीं था। देखने में प्रायः उसी काल के सिक्कों की एक तीसरी किस्म भी थी जिनमें एक ओर देवनागरी अक्षरों में ही किसी हिन्दू सम्राट का नाम व पद अंकित था और दूसरी ओर महमूद महान् का। निस्सन्देह, बादशाह गजनवी द्वारा विजय के उपलक्ष में अपनी सफरी टकसाल में यह ठप्पा बाद में लगवाया गया होगा, ठीक उसी तरह जैसे कि फ्रांस के गणतन्त्रियों ने लुई १६वें के सिक्कों पर दूसरी तरफ स्वतन्त्रता की देवी (की मूर्ति) अङ्कित करा दी थी। मेरी इच्छा थी कि मुझे इस प्रदेश के प्राचीन शहरों में जाकर स्वयं अनुसन्धान करने का समय मिलता जहाँ अरावली की समीपता के कारण प्रणहिलवाड़ा और सौराष्ट्र राज्य के निवासियों ने ग्रीक, पाथियन और हूण जातियों से बार-बार आक्रान्त होकर शरण ग्रहण की थी। बाली में ही मुझे मेवाड़ के राजानों से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक नामावली , देखिए Transactions of the Royal Asiatic Society, Vol. i, p. 338. Plate 1, No. 1. ' वही p. 338, Nos. 2 and 3. ३ सुलतान महमूद गजनवी ने १०२१ ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया था। १०५१ ई. के बाद लाहौर उसके वंशजों की राजधानी हुई। यहां उन्होंने कुछ छोटे-छोटे गंगाजमनी सिक्कों पर एक तरफ अरबी-लिपि के प्रारम्भिक चौकोर अक्षरों में इबारत ठाप दी और सीधी तरफ राजपूती नन्दीश्वर की मूर्ति बनी रहने दी। स्वयं महमूद ने लाहौर में एक विशिष्ट टंक सिक्के पर उप्पा लगाया था। उसमें लाहौर को महमूदपुर लिखा है । इस सिक्के पर एक ओर उसका नाम और अरबी में लेख है तथा दूसरी ओर 'कलमा' का संस्कृत अनुवाद है। --The Coins of India-C.J. Brown, 1922; p. 69. ४ लुई १६ वां फ्रांस के बादशाह लुई १५ ३ का पौत्र था । वह अपने पितामह की मृत्यु के बाद १७७४ ई० में गद्दी पर बैठा । १७८६ ई० में क्रान्ति हुई और वह परिस से भाग गया परन्तु पकड़ लिया गया। १७९२ ई. तक वैधानिक राजा की भांति वह फिर राज्य करता रहा परन्तु इसके बाद राजसत्ता समाप्त कर दी गई और उसका सर उड़ा दिया गया ।-N.S.E; p. 818. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy