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________________ [५१ प्राया था, तब मुझे अपने ठंडक पहुँचाने वाले उपकरणों को फैंक देने की मूर्खता पर पश्चाताप हुआ । दृश्य वास्तव में शानदार था और मेवाड़ के क्रमिक चढ़ाव वाले किसी भी भाग की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली प्रतीत होता था। यहाँ से मैंने महान् अरावली के सीधे और निकले हुए मुखभाग के दृश्य को नज़र भर कर देखा - विभिन्न प्रकार के प्रस्तर खंडों के कारण विविध दृश्यावलीयुक्त व गुम्बद-सरीखी इसकी चोटियाँ, जंगल और झाड़ियों से पटी हुई गहरी एवं अन्धेरी गुफाएं, जिनमें होकर स्फटिक के समान स्वच्छ जल वाले कितने ही पानी के झरने अपने पहाड़ी उद्गम से चुपचाप निकल कर मरुस्थली के निवासियों को ताजगी पहुँचाने के लिए इधर आ पहुँचते हैं। गरमी असाधारण रूप से तेज थी और इस साल वर्षा कम होने के कारण इन 'नाडों' में से कुछ ने तो अपने रेतीले पेटे को बिलकूल ही छोड़ दिया था। यदि जनसेवा से अवकाश मिल पाता तो मैं कोई एक पखवाड़ा पहले ही रवाना हो जाता क्योंकि 'छोटा बरसात' अर्थात् प्रारम्भिक मानसून के बादल इकट्ठे होने लग गए हैं और मुझे डर है कि कहीं मेरे मनसूबे धरे ही न रह जायें । पहले ही एक चीज रही जा रही है जिसकी खातिर मैंने भीलों के वन में होकर जाने की अपेक्षा इस मार्ग को अधिक पसन्द किया था-वह है सादड़ी की नाळ में रायपुरजी [राणपुर] का मन्दिर। यह नाळ अरावली के अङ्गों में से उन दरारों में है जहाँ केवल पैदल-यात्री ही जा सकते हैं । यद्यपि यह स्थान यहाँ से सामने ही दिखाई पड़ता है परन्तु, वहाँ पहुँचने की मेरी हिम्मत नहीं होती क्यों कि जिधर मेरी यात्रा के अन्य बहुत से उद्दिष्ट स्थान हैं उस मार्ग से यह बिलकुल विपरीत दिशा में पड़ता है । यह एक भ्रम ही था यदि इस विशाल ढेर को देखने सम्बन्धी अपनी योग्यता की कुछ भी परख कर पाता तो आज से दो वर्ष पहले उदयपुर से जोधपुर जाते समय ही मुझे इसको देख लेना चाहिए था । यह तथा बहुत से दूसरे स्थान किसी भावी यात्री के लिए छूटे जा रहे हैं, जिसको यहाँ पर, यद्यपि न तो अत्यन्त प्राचीन कुम्भलमेर व अजमेर के मन्दिरों की सो उत्कृष्ट अनुरूपता मिलेगी और न बाडोली और आबू की सी मूर्तियाँ ही दिखाई देंगी परन्तु एक सुदृढ़ गौरव के दर्शन अवश्य होंगे। ___मैंने अपने दूतों को बाली नामक जैन कस्बे के लिए आगे रवाना कर दिया था; यहाँ पर सौराष्ट्र की प्राचीन राजधानी वलभी के निवासी पाँचवीं शताब्दी में इण्डो-सोथिक जाति के आक्रमणकारियों से तंग आकर आ बसे थे । उन लोगों ने यहाँ बहुत से विचित्र सिक्के इकट्ठ कर लिए थे जो कुछ तो इण्डोसोथिक ठप्पे के थे जिनमें एक तरफ किसी राजा की मुण्डो और दूसरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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