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________________ प्रकरण ३; भीलों का प्राहार [ ४e दिया जाय ; परन्तु उन्हें इसको स्वतन्त्रता नहीं है । बेचारे वनवासी का मूल्य सृष्टि (के जीवों) की माप में शूकर अथवा लोमड़ी से बढ़कर नहीं समझा जाता जिनका कि वह (स्वयं) शिकार करता है; और न उसके समृद्ध ज्येष्ठ बन्धु उसे 'पाताल- पुत्र' (नर-पुत्र) अथवा ऐसे कहीं किसी हीन सम्बोधन के अतिरिक्त अन्य नाम से पुकारते हैं। मैं यहां यह भी बता दूं कि उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में रहने वाले भीलों के शरीर में वर्ण का कोई अन्तर नहीं है, हाँ ! गठन में अवश्य ही थोड़ी बहुत भिन्नता है; उत्तरी भीलों के प्रोठ भागे निकलते हुए, बदन तगड़े और मोटे तथा पेट बड़े बड़े होते हैं । इन लक्षणों में वे मेवाड़ के भीलों की अपेक्षा छोटा नागपुर और सरगुजा के निवासियों से अधिक मिलते हैं यद्यपि सरगुजा के कोली से कम जो नीग्रो और असली उजले भील के बीच की कड़ी को जोड़ता हुआ सा प्रतीत होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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