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पश्चिमी भारत की यात्रा तैयार कर लेते हैं तथा अपनी गर्दन को जोखिम में डालकर तड़की हुई चट्टानों पर चढ़ जाते हैं और मधुमक्खियों द्वारा उत्पादित सम्पत्ति (मधु) को लूट कर ले आते हैं। यदि लोहे के खुरपे से थोड़ी सी जमीन को खोदकर बीज डाल देने को ही खेती करने के अर्थ में लिया जाय तो ये लोग कभी कभी कुछ जमीन के टुकडों में खेती भी करते हैं। जब मुख्यतः 'भारतीय अनाज'' अथवा मक्का की छोटी सी फसल पकने पर आती है तब वे अपने परिवारों के साथ इसके पास पास इकट्ठे हो जाते हैं और अच्छी तरह पकने तक उसको हरी अवस्था में से ही खाने लग जाते हैं।
इन लोगों की नैतिक आदतों के बारे में हम बहत प्रशंसा कर सकते हैं। यदि हम उस व्यक्ति' के वाक्यों का प्रयोग करें कि जिसके गहरे ज्ञान के द्वारा मुझे इनकी जानकारी प्राप्त हुई, तो कहेंगे कि कृतज्ञता के विषय में इन लोगों की बहुत ही कोमल भावनाएं हैं और इधर यह वाक्य तो कहावत बन गया है कि किसी सैरिया को एक बार भोजन करा दीजिए वह उम्र भर याद रखेगा।' नरवर, श्योपुर और चम्बल के बाएं तट की पहाड़ियों में ये प्रकृतिपुत्र बहुत बड़ी संख्या में पाए जाते हैं और इनकी पहली इच्छा यह होती है कि उनको महामाया के वरदानों का उपभोग करने के लिए खुला छोड़
मक्का, मूल भारतीय धान्य नहीं है । इसे कोलम्बस ने 'रेड इण्डियन्स' से प्राप्त किया और स्पेन व पुर्तगाल के व्यापारी १५४० ई० के लगभग इसे भारत में लाये थे। इससे पूर्व के भारतीय साहित्य में इसका उल्लेख प्रायः नहीं मिलता है।
- देखिए; स्वर्गीय डॉ० पी० के० गौडे का म० म०,
प्रो०, डी० वी० पोद्दार स्मारक ग्रंथ में प्रकाशित
'मक्का' का इतिहासविषयक लेख । पृ० १४-२५ २ फतह, मेरा एक डाक जमावार, जिसका नाम मैने 'इतिहास' (Annals) में लिखा है,ने इन लोगों को डाक-मार्ग पर डाक दौड़ाने वालों में बदल दिया था। इन्हीं जंगली जातियों के भरोसे पर में उस समय बम्बई और गङ्गातट के प्रान्त के बीच पत्रव्यवहार जारी रख सका था जब कि मैंने अपने अन्य कर्तव्यों के साथ साथ सिंधिया को छावनी के पोस्ट-मास्टर का कर्तव्य भी अपने ऊपर ले लिया था; भार १८१५ ई० में मार्कुइस हेस्टिगस के पास, जो उस समय गंगा किनारे फरुर्खाबाद में थे, विलायत से प्राई हुई एक महत्त्वपूर्ण डाक बम्बई से इतनी दूर केवल नौ दिनों में भेज सका था। यह स्मरण रखना चाहिए कि यह दूरी नो सौ मील से भी अधिक है और रास्ता उन देशों में होकर जाता था जिन पर बुटिश सरकार, उनके मित्रों या उनके शत्रुओं में से किसी का अधिकार नहीं था।
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