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________________ ४४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा है । एक और भी दुःखपूर्ण घटना का दायित्व हम पर आ पड़ा और वह भी दुर्भाग्य से उस समय जब कि उनके बीच में मेरा निवास-काल प्रायः समाप्त हो रहा था । राठौड़ों और हाडानों के देश में बार बार आते-जाते रहने से उदयपुर में मेरी अनुपस्थिति के कारण इन गरीब भीलों को शत्रुओं ने दबा दबा कर बहुत से हिंसक कार्य करने के लिए बाध्य कर दिया था; और मौके पर निरन्तर उपस्थित रह कर उन पर कड़ा निरीक्षण रखे बिना उनकी उत्साहपूर्ण आज्ञाकारिता के अपराध-वृत्ति में बदल जाने के भेद को जान लेना सम्भव नहीं था । उनके राजपूत सरदार छेड़ छाड़ अथवा शान्तिभङ्ग करने के लिए उनको कई तरह के छल-कपटपूर्ण तरीकों से प्रोत्साहित करते थे और वे बेचारे (ऐसे कार्यों में ) अपने प्राकृतिक रुझान के कारण आसानी से जाल में फँस जाते थे; कभी वे यात्रियों को लूट लेते या जंगलों में से लकड़ी या बाँस काटते समय नीमच की छावनी के अंग्रेज सिपाहियों को तंग करते । छावनी के तत्कालीन अध्यक्ष वीर कर्नल लडलो' (Ludlow) के पास से ऐमी गड़बड़ी की शिकायतें मेरे पास बराबर प्राती रहती थीं; अन्त में, एक फौजी टुकड़ी को लूटकर जंगल में अपने स्थानों में जा छुपने के एक और भी अधिक दुस्साहसपूर्ण कार्य ने राणा जी के पास शिकायत करने और अपनी ही सेना द्वारा उनको इस अपराध का दण्ड देने के आदेश प्राप्त करने के लिए मुझे बाध्य कर दिया गया । आज्ञा प्राप्त होते ही लॅफ्टिनॅण्ट हॅपबर्न ( Hepburn) की अध्यक्षता में एक टुकड़ी तैयार की गई और उसने इतनी होशियारी से कार्य किया कि अचानक ही गाँव को जा घेरा और लगभग तीस अपराधियों को, जिन्हें पीडित लोगों ने पहचान ही नहीं लिया था वरन् जिनके घरों में लूट के [पृ० ४३ की टिप्पणी का शेष ] करके अब्राहम के पवित्र वंश से विच्छेद कर लिया । केवल लाल दाल के शोरबे के लिए समस्त अधिकार छोड़ देने के कारण इसका नाम Edom (जिसका अर्थ 'लाल' है) पड़ा। इसीलिए इसके अनुयायी Edomites (इडोमाइट्स) कहलाने लगे । यही लोग Sons of Esau (ईसाऊ के पुत्र) नाम से प्रसिद्ध हैं जो तत्कालीन समाज में अवरकोटि के समझे जाते थे । -E. B. Vol. VIII, p. 533 १ लॅफ्टि० कर्नल जॉन लडलौ भारत में १६ फर्वरी, १७६५ ई० में आया था। उसने १८१४१५ ई० में हुए नेपाल युद्ध में प्रसिद्धि प्राप्त की और उसे १८१८ ई० में मेवाड़ स्थित सेनासन्निवेश का लॅ० कर्नल नियुक्त किया गया। बाद में नीमच की छावनी का कमाण्डैण्ट बना और २२ सितम्बर, १८२२ ई० में मृत्यु होने तक वह उसी पद पर रहा। List of Inscriptions on Tombs and Monuments in Rajputana and Central India; O.S. Crofton-1934; p. 77. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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